शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१०

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१०

 नमस्कार दोस्तों आप सबका chut-phodo.blogspot.com में बहुत बहुत स्वागत है। आज की कहानी शीतल की रंडी बनने की चुदाई कहानी का तीसरा  भाग है अगर आपने इस कहानी का पिछला भाग नहीं पढ़ा है तो पहले वो भाग पढ़िए और फिर ये वाला भाग पढियेगा। कहानी का पिछला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–९

विशेष सूचना: ये कहानी और इसके सारे चरित्र काल्पनिक है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनका सादृष्य केवल एक संयोग है।

जब विकास ब्रेकफास्ट करने बैठा तो शीतल बोली- "कल वसीम चाचा से बात हुई थी..."

विकास नाश्ता करने में बिजी रहा। उसने सुना ही नहीं, क्योंकी उसे लेट हो रहा था तो वो अपने ही ख्यालों में खोया था। शीतल फिर से बोली तो भी विकास का कोई रिएक्सन नहीं हुआ। शीतल को गुस्सा आ गया की वो इतनी इंपाट बात कर रही है और ये सुन भी नहीं रहा है।

शीतल इस बार जोर से बोली- "तुम सुन नहीं रहे हो विकास.."

विकास ने हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा और पूछने के अंदाज में- "हैं.." क्या।


शीतल बोली- "मैं वसीम चाचा से चुदवाना चाहती हूँ..." शीतल एक ही सांस में फाइनल बात बोल गई।

विकास का हाथ रूक गया। वो प्रश्न और आश्चर्य भरी नजरों में शीतल को देखने लगा। वो बोल नहीं पाया क्योंकी उसका मुह भरा हुआ था रोटी से।

शीतल फिर बोली- "वसीम चाचा से बात हुई। अगर तुम उन्हें बोल दो की वो मुझे चोद सकते हैं तो फिर उन्हें कोई प्रोबलम नहीं है..."

विकास ने खाना निगल लिया और बोला- "अचानक... कभी कुछ बोलती हो कभी कुछ.. अब क्या हुआ?"

अब शीतल क्या बताती की वो खुद को रोक नहीं पाती? वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती हैं। वो चाहती है की खूब चुदे वसीम से, लेकिन वसीम है की बिना विकास के बोले उसे चोद ही नहीं रहा। वो तो रोज कोशिश करती है लेकिन बही नहीं चाहते तो अब तुम उन्हें बोल दो फिर मैं उनसे छिनाल बनकर चुदूंगी।
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शीतल बोलना स्टार्ट की की तब तक विकास का नाश्ता खतम हो चुका था। वो हड़बड़ी में उठा और बोला की रात में आता हूँ तो बात करता हूँ। शीतल बेचारी बहुत उदास हो गईं। एक मिनट की बात थी की विकास वसीम चाचा को बोल देता फिर मैं आराम से अभी ही चुद लेती। वो जाने की तैयारी कर रहा था।

शीतल से रहा नहीं गया, वो बोली- "विकास वो बहुत परेशान हैं...'

विकास अपने बैग में डाक्यूमेंट्स रखता हुआ बोला- "रात में बोलता हूँ ना जान..."

शीतल- "इसमें बात क्या करना है। कहीं तुमने अपना इरादा तो नहीं बदल लिया? मैं उन्हें बोल चुकी हूँ की तुम्हें काई परेशानी नहीं है और तुमने मुझे पमिशन दे दिया है। मैं नहीं चाह रही थी। उन्हें कोई दिक्कत नहीं है."

विकास- "कोई इरादा नहीं बदला है। अभी देर हो रही है इसलिए बोला की रात में आता है तो बोलता हूँ."

अब भला शीतल पूरा दिन कैसे गुजारती? उसकी चूत बगावत कर रही थी। शीतल बोली- "तुम्हें उनकी हालत का अंदाजा नहीं है इसलिए तुम ऐमें बोल रहे हो। एक मिनट लगेगा और इसके लिए तुम्हारे पास टाइम नहीं है। उनकी भी जिद है की बिना तुम्हारी पमिशन के वो मुझे नहीं चोदेंगे और तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है.."

विकास कुछ नहीं बोला और अपने बैग को लेता हुआ बाहर चलने लगा- "बाई जान, लव यू..." बोलता हुआ वो बाहर जाने लगा।

शीतल अपना मोबाइल लेकर दरवाजा पे आकर बोली- "इसमें काई करके बोल दो, इसमें तो टाइम नहीं लगेगा..."

विकास रुक गया और शीतल के हाथ से मोबाइल ले लिया। उसने रेकार्डर ओन किया और बोला- "वसीम चाचा, आप शीतल के साथ सेक्स कर सकते हैं, मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं है.." कहकर विकास ने शीतल के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया और बाहर निकल गया। वो गुस्से में था।

शीतल भी अंदर आ गईं। वो भी विकास पे गुस्सा थी। पहले तो वो गुस्से में ही सोचती रही की खुद बोले की मदद करने के लिए जिश्म दे रही हो तो अच्छी बात है, मैं तुम्हारे साथ है, और अभी जब बोली तो भाव खा रहा है। एक मिनट लगता सिर्फ। तुम्हें क्या है, तुम परेशान नहीं हो ना। दिन भर की अहमियत तुम्हारे लिए कुछ नहीं है। अगर दिन भर में ही वसीम चाचा ने कुछ कर लिया तो?

धीरे-धीरे शीतल का गुस्सा शांत होने लगा और फिर वो सोचने लगी। छिमैं कितनी गंदी है, पागल ह में। क्या क्या बोल दी उन्हें। सुबह-सुबह हड़बड़ी में मीटिंग में जा रहे हैं और मैं उन्हें वसीम चाचा को बोलने के लिये कह रही हैं। एकदम चुदवाने के लिए पागल हो गई हैं मैं। सच की रंडी बन गई हैं मैं। मैं वसीम चाचा की मदद क्या करेगी? मैं खुद चुदवाने के लिए मरी जा रही हैं।

शीतल को अब बुरा लगने लगा था। वा विकास को काल की और उसके काल रिसीव करते ही- "सारी जान, वेरी बेरी सारी। आईलव म। पता नहीं कैसे बोल रही थी मैं और क्या-क्या बोल गई? आई आम रियली बेरी सारी...'

विकास मुश्करा उठा। वो भी अपनी बीवी में बहुत चाहता था, बोला- "इट्स ओके बाबू। ना नोड फार सारी... मैं

समझ सकता हूँ की तुम्हें वसीम चाचा की हालत पे तरस आ रहा होगा, और इसलिए तुम खुद को रोक नहीं पा रही थी। तुम जा सकती हो उनके पास। अगर वो रेकार्डिग से ना माने तो मुझे काल कर लेना। मैं उन्हें फोन पे बोल दूँगा। खुश?"

शीतल- "थैक्स जान, मुझे पता था तुम मुझे समझते हो। तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो ना?"

विकास- "नहीं जान, मैं तुमसे गुस्सा हो ही नहीं सकता। आई लव यू। जाओ और उन्हें जो चाहिए वो दो। शर्मा ना मत, उन्हें ये ना लगे की वो किसी और की कोई चीज इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें ये एहसास हो की वो अपनी चीज को इस्तेमाल कर रहे हैं। तभी उन्हें राहत मिलेगी..."

शीतल- "आहह... विकास यू आर सच आ डार्लिंग। आई लव यू."

विकास- "आई लव यू टू। अभी ही चली जाओ उनके पास तो ठीक रहेगा, क्योंकी कुछ देर बाद में काल रिसीव नहीं कर पाऊँगा..."

शीतल अब खुद को रिलॅक्स महसूस कर रही थी। काल डिसकनेक्ट करते ही ये सोचकर की अभी ही वसीम चाचा के पास जाना है और उनसे चुदवाना है, शीतल के पेट में गुदगुदी होने लगी। उसकी धड़कन तेज हो गई। वो सोच रही थी कैसे जाए उनके पास? वो चाय बनाने लगी वसीम के लिए। वो सिर पे आँचल रखकर नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हए वसीम के दरवाजा के पास पहुँची। बो उस नई दुल्हन की तरह ही शर्मा रही थी जो दूध का ग्लास लेकर सुहागरात वाले कमरे में अपने पति के पास जाती है।

शीतल वसीम के दरवाजा तक तो पहुँच गई थी। लेकिन तब तक उसकी धड़कन और सांसें बहुत तेज हो गई थी। बो अभी चुदने वाली है वसीम से, ये सोचकर डर शर्म उत्तेजना की बजह से वो बहुत घबरा गई। वो दरवाजा में नाक नहीं की और वापस नीचं आ गईं।
……………………..

शीतल सोचती है- "आह्ह... अभी मैं चुदवाने वाली हूँ.. कैसे चोदेंगे वो? मैं उनका लण्ड सह तो पाऊँगी ना? कितना बड़ा है उनका? मुह में तो आता नहीं, कितना फैलाना पड़ता है। पता नहीं चूत में कैसे जाएगा? होगा... विकास का लण्ड अंदर जाता है तो अभी तक दर्द होता है। इनका तो पता नहीं क्या करेगा? कहीं अगर मैं दर्द नहीं सह पाई तो? नहीं फिर तो उन्हें बुरा लगेगा की में जानबूझ कर ऐसा कर रही हैं। नहीं नहीं, मुझे दर्द तो सहना ही होगा। पैर पूरी तरह से फैला लेंगी..."

नीचे आते हुए शीतल बहुत कुछ सोच चुकी थी। वो किचेन में जाकर पानी पी और सोफे पे थोड़ी देर बैठ रही। उसका ध्यान बस वसीम के लण्ड और अपनी चुदाई में ही अटका था। वो खुद को मेंटली तैयार कर रही थी। बो अपने रूम में गई और अपने कपड़े चेंज कर ली।

शीतल सिपल ब्रा पहनी थी जिसे उतारकर डिजाइनर ब्रा पेंटी पहन ली। वसीम चाचा इसमें वीर्य गिरा चुके हैं, आज फाइनली बो इसे पहनने वाली की चूत में वीर्य गिराएंगे। आह्ह.. कितना मजा आएगा। विकास का वीर्य अंदर गिरता है तो मैं झड़ जाती हैं। वसीम चाचा का वीर्य तो बहुत सारा होता है और ये तो एकदम अंदर गिरेगा। आह्ह.. शीतल खुद को आईने में देखी। लाल साड़ी में बा जंच रही थी। साड़ी वो हमेशा नाभि से नीचे ही पहनती थी, आज थोड़ा ज्यादा नीचे पहनी थी। लेकिन आईने में देखकर उसे लगा की साड़ी और नीचे होनी चाहिए, तो वो साड़ी को और नीचे कर ली। वो अपने हाथ से चचियों को ब्लाउज़ से थोड़ा बाहर करते हए क्लीवेज को फैलाई। वो एक साइड आँचल ली जिससे उसकी एक चूची दिख रही थी। वो फिर से मेकप को रीटच की। बिंदी हटाकर बड़ा सा टीका लगा ली कुमकुम से। होठों पे डार्क रेड लिपस्टिक। कांखों पे पफ्यूँम।

आखीर कार, बड़े इंतजार के बाद वसीम चाचा अपनी रंडी को चोदने वाले हैं। सजना तो पड़ेगा ही। सुबह के बारे में तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। चल शीतल अब देर मत कर, चल चुदवाने।

विकास का काल आया, और पूछा- "कहाँ हो?"

शीतल बोली- "घर में, क्या?"

विकास बोला- "वसीम चाचा के पास चली गई या जाओगी?"

शीतल बोली- "अभी नहीं गई हैं, थोड़ी देर में जाऊँगी..."

विकास ने उसे फिर से समझाने लगा- "इस पल को यादगार बनाना उनके लिए। तुम अपना सब कुछ दे रही हो तो ख्याल रहे की उन्हें भी लगना चाहिए की उन्हें बहुत कुछ मिल गया। वो पूरी तरह संतष्ट होंगे तभी रिलैंक्स हो पाएंगे, नहीं तो फिर ये प्यास खतम नहीं होगी..."

शीतल चुपचाप सुनती रही और हाँ हूँ करती रही। फिर बाइ और लव यू बोलते हुये उसने काल काट दिया। शीतल में फिर से चाय बनाई और चल दी। उसने अपनी साँसों को सम्हाला और दरवाजे पे नाक करती हुई आवाज लगाई- "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."

वसीम जाग चुका था। रात में कई बार बो शीतल की पिक्स देखा था। जो उसने लिया था, वो भी और जो शीतल अपने मोबाइल से लेकर दी थी वो भी। रात में उसने मूठ भी मारा था। वसीम को लगा की शीतल या तो उसे बुलाने आई होगी, या फिर विकास को लेकर आई होगी। वसीम ने अपने कपड़े ठीक किए। वो अपनी लूँगी गंजी में ही था। दरवाजा खोलते ही जैसे उसका दिन बन गया। शीतल सिर पे आँचल लिए मुश्कुराती खड़ी थी।

शीतल "गुड मार्निंग' बाली और चाय का प्याला वसीम की तरफ बढ़ा दी। अनायास ही वसीम के मुंह से "सुभान अल्लाह' निकल पड़ा। वसीम नेचाय का कप ले लिया और शीतल रास्ता बनाती हई अंदर आ गई। शीतल के अंदर आने के बाद वसीम को एहसास हुआ की वो दरवाजे पे ही खड़ा है। वसीम ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके सामने शीतल की पीठ थी। उफफ्फ... वसीम का लण्ड थोड़ा सा मह में आ रहा था, और शीतल की पीठ देखते ही एक झटके में टाइट हो गया।

शीतल की पीठ पूरी नंगी थी। साड़ी गाण्ड की लाइन के पास बंधी हुई थी। उसके चूतड़ और उभरे हए लग रहे थे। गर्दन से लेकर गाण्ड तक के बीच में बस ब्लाउज़ की 2" इंच की पट्टी थी और बाकी का पूरा हिस्सा चमक रहा था।

शीतल वसीम की तरफ पलटी और बोली- "मेरा गिफ्ट कैसा लगा कल?"

शीतल सामने से तो किसी को भी अपनी तरफ देखने के लिए मजबूर कर सकती थी। अभी शीतल को देखकर शरीफ से शरीफ आदमी का लण्ड टाइट हो जाता। ब्लाउज़ पूरी गोलाई में सम्हाले था चूचियों को लकिन चूचियां फिर भी बाहर आने को बेताब थी। चिकना सपाट पेंट चूत की लाइन तक चमक रहा था।

शीतल दुबारा बोली- "बोलिए ना कसा लगा मेरा गिफ्ट आपको?"

वसीम तब अपनी दनियां में लौट पाया। उसे शीतल की पिक्स याद आ गई और वो वालपेपर भी। वसीम बोला
"लाजवाब..."

शीतल- "थैक्स। जल्दी चाय पीजिए, ठंडी हो जाएगी.."

वसीम चाय के घुट मारने लगा। तुरंत ही चाय खत्म हो गई। शीतल तब तक वसीम के मोबाइल की वालपेपर देख रही थी। शीतल वसीम का मोबाइल रख दी और चलती हुई वसीम के सामने आई और उसके गले लग गई

और उसके होठों को चूमने लग गई। वो अपने हाथ के मोबाइल में विकास का का मेसेज़ प्ले कर दी। वसीम समझ गया की अब उसके और शीतल के बीच में कुछ भी नहीं है। फाइनली रंडी उसकी हई। उसका जी चाहा की अपने स्टाइल में शुरू हो जाए लेकिन वो शीतल के आक्सन का इंतजार करने लगा।

शीतल वसीम के होठ को चूमना छोड़ दी और उसके सीने में अपने सिर को रखकर बडे अपनेपन से बोली- "बस तड़पना खत्म, आपके मन में मुझे लेकर जितने भी अरमान हैं सबको पूरे करने का वक़्त आ गया है। अब कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। अब सब कुछ सही है। मैं पूरी तरह से आपको समर्पित है अब। अपनी इच्छा से और अपने पति के पमिशन से। अब आप निश्चित होकर खुले मन से मुझे चोद सकते हैं। अब मत रोकिए वसीम चाचा खुद को और जो जी में आए को करिए, जैसे चाहे वैसे करिए। मैं पूरी तरह आपका साथ दूँगी...'

वसीम ने भी शीतल की पीठ पे हाथ रखकर उसे गले लगा लिया। उसनें शीतल के माथे में किस किया तो शीतल ऊपर वसीम के चेहरा की तरफ देखने लगी। शीतल के रसीले होंठ देखकर वसीम खुद को रोक नहीं पाया लेकिन फिर भी बस छोटा सा किस किया और बोला।
वसीम- "तुम लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया शीतल। ये बहुत बड़ी बात है की मुझे समझकर और मेरी मदद करने के लिए तुम इतना बड़ा फैसला ली और विकास ने इसमें तुम्हारा साथ दिया। ऊपर वाले की बहुत मेहरबानी है। मेरे ऊपर। मैं बहुत खुशनशीब है की तुम मेरी जिंदगी में आई। लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहना चाहूँगा की एक बार फिर से सोच ला शीतल। किसी गैर-मर्द को अपना जिक्ष्म देना आसान बात नहीं है। तुम एक बार फिर से अपने फैसले में सोच सकती हो..'

शीतल- "जितना सोचना था सब सोच चुकी हूँ वसीम चाचा। अब मेरा जिस्म आपका है। आज मेरा तन और मन दोनों आपका है। मैं पूरी तरह से अपने आपको आपके हवाले करती हूँ । आप जो कछ भी करेंगे में आपका साथ हूँ

वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."

शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."

वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."

शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."
वसीम ने आगे बढ़कर शीतल को गले लगा लिया और बोला- "शुक्रिया शीतल, बहत बहुत शुक्रिया.." कहकर वसीम बेड पे बैठ गया और शीतल उसकी गोद में बैठ गई।

शीतल वसीम के गले में छाती में चमनें लगी सहलाने लगी थी।

वसीम बोला- "हाँ... शीतल, अब तुम मेरी हो, पूरी तरह से मेरी, मैं तुम्हें अब पूरी तरह से पा सकता हैं बिना किसी डर के बिना किसी हिचकिचाहट के। लेकिन शीतल, मैं इस लम्हें को जीना चाहता हैं। महसूस करना चाहता हैं। मैं नहीं चाहता की इतना कीमती लम्हा मेरी जिदगी में आए और एक-दो घंटे में खतम हो जाए। मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ लेकिन ऐसे नहीं। ऐसे की जैसे तुम मेरी दुल्हन हो और आज हमारी सुहागरात हो। मैं तुम्हें दुल्हन के लिबास में देखना चाहता हूँ और पूरी रात तुम्हारे आगोश में बिताना चाहता हूँ.."

शीतल एक पल के लिए सांची, क्योंकी रात में विकास आ जाएगा लेकिन अभी तुरंत वा बाली की पूरी तरह वसीम का साथ देगी तो वो उसे मना नहीं कर सकती है। वो मुश्कुराते हुए बोली- "जैसा आप कहें। रात में आपकी दुल्हन आपका इंतेजार करेंगी। आज आपको हमारी सुहागरात होगी.."

वसीम खुश होता हुआ शीतल के होठों को कस के चूम लिया और ब्लाउज़ के अंदर हाथ डालकर एक चूची को कस के मसल दिया।

शीतल अचानक हुए इस हमले से हड़बड़ा गई और दर्द से उसके मुह से "आह" निकल गई।

वसीम बोला- "आहह... शीतल में खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं बहुत खुश हैं। आज मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है... और वो फिर से शीतल के होंठ चूमने लगा और चूची को मसल दिया।

शीतल दर्द बर्दाश्त की और मुश्कुरा दी। वसीम बोला- "उफफ्फ... शीतल अब तुम जाओ यहीं से, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। मैंने इतने साल इतने दिन खुद को रोका है तो एक दिन और मुझे खुद को रोकना ही होगा, ताकी मैं अपनी सुहागरात को पूरी तरह से मना पाऊँ...'

सही बात है। अब रोक पाना वाकई मुश्किल था। शीतल भी गोद से उठ खड़ी हुई और आँचल ठीक कर ली। उसकी चूचियों पे वसीम की उंगलियों के निशान छप चुके थे। आज शीतल के परे जिस्म वसीम का निशान लग जाजा था। शीतल की राह में भी वसीम का कब्ज़ा हो जाना था। शीतल चाय का कप उठाई और जाने लगी,
और बोली "शाम में शादी के जोड़े में आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी वसीम चाचा.."

वसीम बोला- "अब वसीम चाचा मत कहो । सिर्फ वसीम कहो, मेरे वसीम..."

शीतल खिलखिला कर हँस दी, और बोली- "ठीक है वसीम, शाम को आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी..."

शीतल नीचे आ गई। वा बहुत उत्तेजित थी। अच्छी बात तो है। मैं काई रडी थोड़े ही ना है की गई और चुदकर आ गई। इतनी मेहनत के बाद पहली बार वसीम चाचा... नहीं नहीं वसीम। मरे वसीम मुझे चोदने वाले हैं। इस लम्हें को तो यादगार बनाना ही चाहिए। मैं तो बहुत खुशनशिब हूँ की दुबारा सुहागरात मनाने वाली हूँ । मुझे वसीम चाचा उफफ्फ.. वसीम को खुश करना है। सौंप देना है उन्हें खुद को। उन्हें लगना चाहिए की यही उनकी सुहागरात है। लेकिन रात में तो विकास भी आ जाएंगे। अफफ्फ... उनके सामने ऐसे सुहागरात मना पाऊँगी में? मेरे लाख चाहने पे भी मैं वसीम को खुद को पूरी तरह नहीं साँप पाऊँगी।

शीतल वसीम को काल लगाई और बताई- "जैसा तुमने कहा था उसी तरह वसीम चाचा उस लम्हे को मेमोरेबल बनाना चाहते हैं। वो मेरे साथ सुहागरात मनाना चाहते हैं। मैं क्या करूँ? उन्हें ना भी नहीं बोल पाई..

विकास बोला- "ये तो अच्छी बात है। तब उन्हें हर बात याद रहेगी और वो संतुष्ट हो पाएंगे। तुम बस ये ख्याल रखना की कोई कमी ना रह जाए। ऐसा ना हो की तुम्हारी इतनी बड़ी कुर्बानी भी किसी छोटी बात की वजह से बेकार हो जाए। और देखो ना, यहाँ आकर पता चला की कल भी कुछ काम है तो मैं कल ही आ पाऊँगा.."

शीतल को भी लगा की विकास के रहने के बाद वो खुलकर वसीम का साथ नहीं दे पाती। थोड़ी और बातें करने के बाद विकास से गुइ-लक लेते हुए उसने काल काट दिया। वो अपने बार्डरोब से शादी की ड्रेस निकाली जिसे पहनकर वो शादी की थी। डिज़ाइनर लहंगा चोली था वो। लहंगा तो ठीक था, बो चोली को देखने लगी की सही फिटिंग आएगी या नहीं। शीतल अपने पल्लू को नीचे गिराई और ब्लाउज़ को उतारकर चोली पहनकर देखने लगी। उसकी चूची अब बड़ी हो गई थी। साइज 32 इंच से बढ़कर 32डी हो गया था। चोली पूरी तरह से सीने में दब गई थी। वो वापस ब्लाउज़ पहन ली।

शीतल कुछ लिस्ट बनाई और मार्कट आ गई। सबसे पहले वो कुछ-कुछ समान ली और फिर एक टेलर वाले के पास गई। टेलर को वो चोली का नाप सही करने बोली, और थोड़ी कांट छांट करने बाली जिसमें बैंक और नेक थोड़ा और डीप हो जाए।

टेलर ने उससे कहा की इसमें तो वक्त लग जाएगा और चोली खराब भी हो सकती है, आप नई चोली ही ले लीजिए। उसने शीतल को इसी चोली से मिलते जलते कलर की कई चोली दिखाई। एक चोली बिल्कुल मैंच कर रही थी और उसका डिज़ाइन भी बहुत अच्छा था। उसके साथ शीतल ने मैचिंग ट्रांसपेरेंट चुन्नी भी ले लिया। एक बहुत बड़ा कम खतम हो गया था उसका।

शीतल फिर अपने ब्यूटी पार्लर में गई। वहाँ वो हाथ में बाजू तक और पैर में जाँघ तक मेहन्दी लगवाई। मेहन्दी लगाने वाली लड़की ने उसकी कमर पें सामने की तरफ भी टैटू जैसा और पीठ में भी एक डिजाइन बना दिया। कमर पे बना डिजाइन सामने में पैटी लाइन में बना था और पीठ में बना डिजाइन उसकी गर्दन के नीचे और ब्रा के हक के ऊपर बना था। शीतल का गोरा जिस्म उस मेंहन्दी में दमक रहा था। पार्लर वाली को ही बोलकर उसने एक फूल वाले से बात कर लिया जो शाम में उसके बेड को सजा देने वाला था।

शीतल को यहाँ से फ्री होते-होते ही 4:00 बज गये थे। वो घर पहुंची और फूल वाले को काल कर दी। जितनी देर में शीतल खाना खाई की बैड सजाने वाले आ गये। शीतल उन्हें बेडरूम में ले आई और वो लोग सुहागरात की। सेज सजाने लगे। एक तो शीतल वैसे ही बहुत खूबसूरत थी, आज मेकप और मेहन्दी लगने के बाद तो वो चमक रही थी। दोनों बेड सजाते हुए आपस में बातें कर रहे थे। शीतल रूम में देखने जा रही थी की बैंड कैसा सज रहा है की उनकी बातों को सुनकर बो बाहर ही रुक गई और उनकी बातें सुनने लगी।
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सेज सजाने वाला-"कितनी मस्त माल है यार, क्या फिगर है, क्या चिकना बदन है। छुओ तो हाथ फिसल जाए।

बदन इन फूलों के ऊपर मसला जाएगा। इसकी ता चूत में पूरी खुजली मची हुई होगी अभी। पूरी तैयारी करवा रही है अपनी चुदाई की। माल तो ये इतनी मस्त है की इसका नंगी करते ही कहीं झड़ ना जाए इसे चोदने वाला। बेचारी की इतनी मेहनत बेकार हो जाएगी। लेकिन सोच की उसे मजा कितना आएगा जब इसके नंगे बदन को फूलों की सेज में लिटाकर चोदेगा। मुझे तो एक मौका मिले तो सारी जिंदगी की प्यास मिट जाए."

शीतल वहाँ से हट गई और किचेन में खाना बनाने में लग गई। वसीम के आने से पहले उसे पूरी तरह फ्री हो जाना था। वो सोचने लगी- "सही तो कह रहे हैं दोनों। मेरी तो चूत में सच की आग लगी हुई है। अपनी ही चराई करवाने के लिए मैं कितनी बिजी हैं। किसी गैर-मर्द के साथ सुहागरात... ओफफ्फ.. नहीं नहीं अब मुझे ये सब नहीं सोचना चाहिए। वसीम का पूरा हक है मेरे जिश्म पें। आज मैं उनकी हैं, पूरी तरह वसीम की। आज विकास मेरे लिए गैर-मर्द हैं। ऊपर वाला भी तो यही चाहता है, तभी तो विकास आज जी टाउन से बाहर । आज मुझे विकास के बारे में नहीं सोचना है। सिर्फ वसीम ही मेरे हैं आज..."

दोनों लड़के शीतल और वसीम की सुहागरात की सेज सजाकर चले गये। शीतल रात के लिए खाना बना चुकी थी। उसने घड़ी पे नजर डाली तो 6:00 बज चुके थे। अब बस शीतल को तैयार होना था। लेकिन वो साची की "सुबह के बाद वसीम से कोई बात भी नहीं हो पाई है तो एक बार उनसे बात तो कर लें। पूछ ताल की वा कितने बजे आएंगे अपनी दल्हन के पास? पता चला की मैं तैयार ही नहीं हुई और वो आ गये या मैं तैयार होकर बैठी हैं और उन्हें लेट हो रही है। शीतल वसीम को काल लगाई- "हेलो.."
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वसीम- "हाँ... हेलो..'

शीतल- "वसीम...

वसीम।- "हाँ... मेरी जान, तुम्हारा वसीम ही बोल रहा हूँ..

शीतल मुश्कुरा दी "कैसे हैं वसीम, कब आएंगे अपनी दुल्हन के पास.." बोलती हुई शीतल शर्मा गई और उसकी चूत में एक लहर सी दौड़ पड़ी।

वसीम- "मैं तो कब से बैठा हूँ अपनी दुल्हन को पानं के इंतजार में, तुम जब बोलोगी तब हाजिर हो जाऊँगा.."

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शीतल खिलखिला कर हँस दी- " आ जाइए ना जल्दी से..."

वसीम- "बस आ रहा है थोड़ी देर में, 8:00 बजे तक आ जाऊँगा। विकास आ गया है क्या?"

शीतल- "नहीं, कल भी उन्हें कम है तो आज वो नहीं आ पाएंगे। आप आइए, 8:00 बजे आपकी दुल्हन आपका इंतजार कर रही होगी.. कहकर शीतल फोन काट दी।

वसीम झूम उठा की विकास नहीं रहेगा।

विकास के रहने के बाद भी उसे शीतल के साथ सुहागरात तो मनाना था ही लेकिन तब उसे थोड़ी आक्टिंग करनी पड़ती। लेकिन अब वा बिंदास होकर अपने अंदाज में शीतल के गोरे मखमली जिश्म को लूटेगा। आह्ह... मेरी जान शीतल, बहुत तरसा हूँ तेरे लिए और मैंने बहुत तड़पाया है तुझे। बहुत बार तेरे जिस्म को प्यासा छोड़ा है मैंने। लेकिन आज वो सारी प्यास मिटाकर रख दंगा। आज बताऊँगा की मैं क्या चीज हैं? आज बताऊँगा की चुदाई क्या होती है? बस मेरी रांड़, दो घंटे और, फिर तेरा सुनहला बदन मैरी गिरफ्त में होगा आह्ह.."

शीतल के पास दो घंटे थे सजने के लिए वो अपनी सजावट में लग गई। चुदवाने की सजावट में। शीतल पूरी तरह नंगी हो गई और आईने में खुद को देखने लगी- चलो शीतल रानी, सुहागरात मानने के लिए तैयार हो जाओ। उसका पूरा जिशम चिकना तो था ही फिर भी वो चूत, गाण्ड और कांखों के बालों पे हेयर रिमूका कीम अप्लाई कर ली। फिर शीतल अपनी कमर के नीचे चूत, गाण्ड और जांघ एरिया और चूची में फेंशियल मसाज की। नहाते वक्त शीतल अपनी चूत में उंगली कर रही थी। वो अपनी चूत से पानी निकालना चाह रही थी। वा चाहती थी की जब वसीम उसके जिस्म से खेलें तो वो वसीम का भरपूर साथ दे। चूत से पानी निकला हुआ रहेगा तो वो देर तक वसीम का साथ दे पाएगी और वसीम से मिलता सूख महसूस कर पाएगी।


शीतल सोचने लगी की कैसे वसीम उसे चोद रहा है। वैसे तो वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती थी, लेकिन अभी कुछ हो ही नहीं रहा था। तभी साचते-सोचते उसका ख्याल बनने लगे की वसीम बेरहमी से उसके साथ पेश आ रहा है। बो बेरहमी से शीतल के जिस्म को नोचता खसोट ताजा रहा है और उसे गालियां देता जा रहा है- रंडी, मादरचोद, कुतिया, हरामजादी, छिनाल और भी बहुत सारी गालियां। ये सब सोचते ही शीतल की चूत गीली हो गई और उंगली करती हुई वो चूत से पानी निकाल ली। पानी निकलने के बाद उसे खुद में बुरा भी लगा की मैं वसीम में किस तरह चुदवाना चाहती हैं और क्या-क्या सुनना चाहती हैं।

शीतल नहाकर वो अपने रूम में आ गई। नहाने के बाद उसका जिश्म और चमक रहा था। उसे फूल वाले लड़कों की बात याद आने लगी- "जो इस माल का चोदेगा उसे कितना मजा आएगा..." शीतल अपने पूरे जिस्म में चाकलेट फ्लेवर की बाडी लोशन लगाई। फिर नई पैंटी ब्रा निकली, लाल रंग की पैंटी ब्रा डिजाइनर थी और ट्रांसपेरेंट थी। पैंटी ब्रा को पहनने के बाद वो घूम-घूमकर आईने में खुद को देख रही थी। कितनी सेक्सी लग रही हैं मैं। आह्ह... वसीम इस चमकते जिश्म पे आज आपका अधिकार है। इतनी मेहनत तो मैं अपनी ओरिजिनल सुहागरात के लिए भी नहीं की थी, जितनी आपके लिये कर रही हैं। मसल देना मझे, रौंद डालना मेरे जिश्म को, अपने मन में कोई कसर मत छोड़ना मेरे दूल्हे राजा। शीतल चेहरे का मेकप पूरा की और उसके बाद शीतल अपने बालों को सवार ने लगी। आधे घंट लग गये उसे बाल बनाने में।

7:30 बज चुके थे। शीतल लहँगा पहन ली। पहले तो बो नाभि से कुछ नीचे पहनी लहँगा को, जहाँ से नार्मली पहनती थी। लेकिन फिर कुछ सोचकर वो लहँगा को और बहुत नीचे कर ली। उसकी कमर पे बने मेहन्दी का डिजाइन अब साफ-साफ दिख रहा था। फिर वा चोली पहन ली। चोली कंधे के किनारे पे थी और सामने थोड़ा डीप था जिससे क्लीवेज थोड़ा सा दिखाते हुए शीतल को सेक्सी बना रहा था। पीठ पे सिर्फ 2 इंच की पट्टी थी।

शीतल अपनी बा को चोली के अंदर करके हक लगा ली। वा अपने माथे पे चुन्नी रखकर माँग में सिंदूर भरने लगी। फिर उसे लगा की अगर मैं लगाऊँगी तो वो विकास के नाम का होगा। आज ऐसा नहीं होना चाहिए। सोच कर वो सिंदूर नहीं लगाती और मंगलसत्र भी उतारकर रख दी। शीतल परे हाथों में चड़ी पहन ली। अब वो पूरी तैयार थी अपनी सुहागरात के लिए। 8:00 बज चुके थे।
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शीतल कि दूसरी सुहागरात गैरमर्द वसीम के साथ

शीतल अपनी चुदाई के लिए पूरी तैयार थी। पूरा मेकप और पूरी ज्वेल्लारी में वो बहुत ही हसीन लग रही थी। उसकी धड़कन तेज हो गई थी। वो किचन में जाकर एक उल्लास जूस पी ली थी। अब उसे ठीक लग रहा था। शीतल 8:00 बजने का इंतजार कर रही थी।

ठीक 8:00 बजे वसीम खान ने दरवाजा नाक किया। वो भी नये कुर्ता पायजामा और स्कल कैप में था। आँखों में सरमा और बदन में इत्र लगाया हुआ था वसीम खान। शीतल कौंपते हाथों से दरवाजा खोली। वो अपने घर का नहीं चूत का दरवाजा खोल रही थी वसीम खान के लिए। वसीम शीतल को देखता ही रह गया। शीतल बहुत हसीन थी, लेकिन आज तो वो कयामत टा रही थी। उफफ्फ.. वसीम की आँखें चंधिया गई थी इस बेपनाह हश्न को देखकर।

शीतल वसीम को में देखती हुई देखी तो शर्मा गई और उसकी नजरें झुक गई। वसीम के लिए ता शीतल का ये अंदाज जानलेवा था। वसीम यूँ ही खड़ा रहा तो शीतल एक कदम आगे बढ़कर उसके गले से लिपट गई, और कहा- "ऐसे क्यों देख रहे हैं, मुझं शर्म आ रही है...

वसीम अपने होश में लौटा, और बोला- "मैंने सुना था हरों के बारे में, आज यकीन हो गया की वो होती होगी, सुभान अल्लाह, तुम्हारा हा न तो बेमिशाल है..."

शीतल अपनी तारीफ सुनकर और शर्मा गई और वसीम को कसकर पकड़ ली। वसीम ने भी प्यार से उसकी पीठ पे हाथ फैरा। शीतल वसीम से अलग हई और थोड़ा पीछे हई दरवाजे से और वसीम अंदर आया। वसीम के हाथ में दो प्लास्टिक का पैकेट था। वसीम साफे के पास प्लास्टिक को रखा और उससे एक कामकाडर और उसका स्टैंड निकालने लगा। शीतल उसे देख रही थी।

वसीम स्टैंड पे कमरा फिक्स करने लगा और बोला- "में आज के हर लम्हे को कैद करना चाहता है.." फिर वा शीतल को देखा और बोला- "तुम्हें इस कैमरे से कोई ऐतराज तो नहीं?"

शीतल ना में सिर हिलाई।

वसीम ने कैमरा सेट किया और शीतल के हरन को उसमें कैद करने लगा। फिर वो खुद शीतल के सामने आया और उसके माथे पे चूमा।

शीतल उसके सीने से लग गई और महसूस करने की कोशिश करने लगी की वसीम ही उसका सब कुछ है। फिर वो वसीम का सीधा खड़ा की और टेबल से आरती की थाली उठा लाई। उसने दिया जला लिया था। वो वसीम की आरती उतारने लगी और फिर उसके माथे पे तिलक लगाई और उसपे फल और चावल फेंकी। फिर वो एक दूसरी थाली ले आई, इसमें दो माला था। शीतल एक माला वसीम को दी और दूसरी अपने हाथ में ले ली।

वसीम समझ गया की शीतल क्या चाहती है? ये तो अच्छी बात थी उसके लिए। कैमरा ऑन था और कैमरे में दोनों की तथाकथित शादी रंकाई हो रही थी। उसे सच में खुशी हुई शीतल का समर्पण देखकर।

शीतल- "आप में माला मेरे गले में डालिए..."

वसीम ने उस फलों के हार को शीतल के गले में डाल दिया। फिर शीतल अपने हार को वसीम के गले में डाल दी। फिर शीतल एक और थाली ले आई। वो जब चल रही थी तो छन-छन की आवाज पूरे घर में गँज रही थी। शीतल वो थाली वसीम के सामने कर दी और शर्माती हुई सिर झुका कर खड़ी हो गई। थाली में सिंदूर और मंगलसूत्र था।

वसीम को पहले तो समझ में नहीं आया की क्या करना है? लेकिन फिर उसकी नजर शीतल के माथे में गई जहाँ सिंदूर नदारद था। वसीम समझ गया की क्या करना है लेकिन वो खड़ा रहा।

शीतल. "मैं चाहती हैं की आप ये सिर मेरी माँग में भरें। अगर मैं खुद से लगाती तो वो विकास के नाम का होता। मैं चाहती हैं की मेरी माँग में आज आपके नाम का सिंदूर हो। मुझे अपने रंग में रंग दीजिए वसीम और अपनी दुल्हन बना लीजिए.."

वसीम बहुत खुश हुआ। उसने थाली से चुटकी में सिंदूर उठाया और शीतल की मांगटीका को किनारे करके उसकी माँग में सिर लगा दिया।

शीतल का रोम-रोम सिहर उठा। अब वो वसीम की दुल्हन है, वसीम की बीवी है। अब अगर मैं वसीम के साथ कुछ भी करती हैं तो कुछ गलत नहीं कर रही हैं मैं। अब वसीम का पूरा हक है मेरे पे। अब मुझे कुछ भी सोचने की जलत नहीं है। वसीम अब गैर-मर्द नहीं मेरे पति हैं।

शीतल मंगलसूत्र उठा ली और थाली को रख दी। बा मंगलसूत्र को फैलाकर वसीम के सामने कर दी। वसीम ने मंगलसूत्र शीतल के हाथ में ले लिया और उसके गले में पहना दिया। शीतल वसीम के सीने में लग गई। अब वो महसूस कर रही थी की वसीम ही उसका सब कुछ है। वसीम ने शीतल के माथे पे चूमा और प्यार से उसकी पीठ और माथे पे हाथ फेरने लगा। इस वक्त दोनों के दिल की भावनाएं सच्ची थी।

शीतल थोड़ी देर बाद वसीम से अलग हुई और उसे साफा पे बिठाकर खुद किचेन में चली गई। बा छन-छन करती हई बापस लौटी तो उसके हाथ में एक और थाली थी जिसमें दो ग्लास थे। शीतल उसमें से एक ग्लास उठाकर वसीम को दी जिसमें दूध भरा हुआ था। वसीम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने खुद इतना उम्मीद नहीं किया था। वो दूध पी लिया तो शीतल दूसरे ग्लास से उसे पानी दी। वसीम ने पानी पी लिया और उलास नीचे रख दिया। उसने एक हाथ से शीतल का एक हाथ पकड़ लिया था।

वसीम ने पाकेट में हाथ डाला और एक पेपर निकाला। उसने एक हाथ में ही पेपर को नीचे गिरा दिया और अब उसके हाथ में सोने का कंगन था। उसने दोनों कलाइयों में कंगन पहना दिया। अब शीतल बहुत खुश थी। उसे भी इसकी उम्मीद नहीं थी। एक औरत को जेवर से बहुत प्यार होता है। एक बार वो सोची की मना कर दें, लेकिन फिर सोची की क्यों मना करे? वसीम उसके पति हैं और उनका पूरा हक है और मेरा भी हक है उनसे तोहफा लेने का।

वसीम आगे बढ़ा और शीतल के कंधे को पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और शीतल शर्माकर उसके सीने में लिपट गई। वसीम ने शीतल का चेहरा ऊपर किया और उसके फूल से नाजुक होठों पे एक हल्का सा चुंबन लिया। शीतल शर्मा शर्माकर एई-मुई की तरह सिमट गई और वसीम का लण्ड टाइट हो गया। वसीम ने कैमरे को बेडरूम की तरफ मोड़ दिया और फिर शीतल की चुनरी को नीचे गिरा दिया और उसे गोद में उठा लिया और चलता हुआ बेडरूम में आ गया।

वसीम रूम देखकर झम उठा। इसी बेड पे वो शीतल के बेपनाह हश्न के मजे लेगा। उसने शीतल को दरवाजे में ही नीचे उतार दिया और फिर कमरा स्टैंड को लाकर रूम में बैंड के एक कोने में लगाकर ऑन कर दिया।

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