शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–४

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–४

नमस्कार दोस्तों आप सबका chut-phodo.blogspot.com में बहुत बहुत स्वागत है। आज की कहानी शीतल की रंडी बनने की चुदाई कहानी का तीसरा  भाग है अगर आपने इस कहानी का पिछला भाग नहीं पढ़ा है तो पहले वो भाग पढ़िए और फिर ये वाला भाग पढियेगा। कहानी का पिछला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–३

विशेष सूचना: ये कहानी और इसके सारे चरित्र काल्पनिक है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनका सादृष्य केवल एक संयोग है।

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शाम में विकास आया तो पता चला की उसने वसीम को अब तक इन्वाइट ही नहीं किया है। शीतल उससे झगड़ने लगी की मैं इतनी तैयारी कर रही हैं और तुमने गेस्ट को इन्वाइट ही नहीं किया। विकास ने तुरंत ही वसीम खान को काल किया। बिकास सोचने पे मजबूर हो गया की शीतल आजकल बसीम में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट ले रही है। कहीं सच में दोनों के बीच कुछ है तो नहीं? उसके दिमाग में बहुत कुछ चलने लगा और उसके लण्ड में हलचल होने लगी की उसकी 23 साल की जवान और बेहद हसीन बीवी एक 50-55 साल के गैर मदं के चक्कर में है।


वसीम खान के पास विकास का फोन आया की आपका आज रात का खाना हमारे घर में ही होगा। वसीम में दाबत कबूल किया और मुश्करा उठा। अब वो दिन दूर नहीं था जब शीतल जैसी मस्त हसीन औरत उसके लण्ड के नीचे होने वाली थी। बसीम के मन में आगे का पूरा प्लान बन रहा था। उसका शिकार अब उसके पंजे से ज्यादा दूर नहीं था।
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शीतल में वसीम को डिनर पर बुलाया शीतल में बसीम पे दया दिखाते हुए मैं दावत रखी थी की वो अकेले रहते हैं इतने सालों से और खाना भी खुद बनाते हैं, तो हम हफ्ते में एक बार तो उन्हें अपने यहाँ खिला ही सकते हैं। शीतल की सोच अब बन गई थी की उनके मन में मेरे लिए अरमान हैं, तो मैं उन्हें पता नहीं लगने दूंगी की मुझे पता है और उनकी हेल्प करेंगी। उन्हें मुझे देखना पसंद है तो वो घर आएंगे तो अच्छे से देख सकेंगे, खुलकर बातें कर सकेंगे। इस तरह उन्हें शायद आराम मिले।

शीतल को क्या पता था की जो बीमारी वसीम को है में उसका इलाज नहीं है, बल्कि उस मर्ज को और आगे बढ़ाने का उपाय है। शायद पता भी हो लेकिन उसने अपने मन को यही समझा लिया था की वो इस तरह वसीम की मदद कर रही है।

विकास भी राजी था की सही बात है, कभी कभार तो हमें वसीम चाचा को लंच या डिनर तो कराना ही चाहिए। विकास भी खाना बनाने में अपनी बीवी की मदद कर रहा था। शीतल बहुत अच्छी साड़ी पहनी थी और बड़े प्यार से सारा खाना बनाया था। उसकी ये साड़ी भी डिजाइनर ही थी जिसमें क्लीवेज और पीठ दिख रही थी। शीतल लो-वेस्ट साड़ी ही पहनी थी। साड़ी का आँचल ट्रांसपेरेंट था जिससे शीतल की नाभि और क्लीवेज साफ दिख रही थी। हालाँकी ये कोई नई बात नहीं थी। शीतल हमेशा ऐसे ही कपड़े पहनती थी।

फिर भी विकास में मजाक में शीतल से कहा- "आज तो वसीम चाचा पे तुम बिजलियां गिराने वाली हो..."

शीतल भी मुश्करा दी। उसका इरादा तो यही था।

वसीम खान अपने बढ़त पे घर आ गया और फ्रेश होकर विकास के घर आ गया। वसीम में सफेद कुर्ता पाजामा पहना था। दरवाजा पे नाक करते ही शीतल दौड़कर दरवाजा खोली। विकास टीवी देख रहा था और जितनी देर में बो उठता तब तक शीतल दरवाजा खोल चुकी थी।

वसीम के ऊपर दरवाजा खुलते ही जैसे बिजली गिर पड़ी। शीतल को देखकर उसके जिम में सिहरन हो गई। बसीम ने शीतल को जब भी देखा था तो दूर से देखा था। इतने करीब से ये पहला मौका था उस हश्न का दीदार करने का। शीतल भी बिजली गिराने को तैयार ही थी।

ट्रांसपेरेंट साड़ी के अंदर से झांकता गोरा चिकना कमसिन बदन, माँग में सिदर, माथे में लाल बिंदी, आँखों में काजल, होठों पे मरून लिपस्टिक, गले में एक चैन क्लीवेज तक और मंगलसूत्र ब्लाउज़ के ऊपर, कसे हुए ब्लाउज़ के ऊपर से झांकती हुई चूचियां, गोरा चिकना पेट नाभि के नीचे तक, दोनों हाथों में पूरी चूड़ियां और पैरों में पायल। शीतल साक्षात अप्सरा लग रही थी। वसीम उसे देखता ही रह गया। उसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी। उसका मन हआ की अभी ही शीतल को बाहों में भर ले और उसे चूमना स्टार्ट कर दे।

शीतल जब मुश्कराती हई खनकती आवाज में- "आइए ना चाचाजी." बोलती हई दरवाजे के आगे से हटी तब वसीम झटके से होश में आया।

वसीम- "औन्न... हाँन..' बोलता हुआ अंदर आया।

शीतल अंदर जाती हुई विकास को आवाज लगाई- "उठिए ना, देखिए वसीम चाचा आए हैं, आप कब से टीबी हो देख रहे हैं...

वसीम पीछे से शीतल की चमकती पीठ और कमर में हो रही थिरकन का मजा ले रहा था।

विकास तब तक वसीम का स्वागत करने के लिए उठ चुका था और वसीम को बोला- "आइए अंकल, बैठिए, कैसे

बसीम अब सम्हल चुका था और- "सब बदिया। आप सुनाइए?" बोलता हआ सोफे पे बैठ गया।

विकास और वसीम बातें करने लगे। तब तक शीतल किचेन से एक ट्रे में पानी और कोल्ड-इिंक उलास में ले आई

और बसीम को बड़े अदब से सर्व की। शीतल के झुकते ही उसकी चूचियां ब्लाउज़ से बाहर निकल जाने को आतुर हो जाती थी। वसीम और विकास ने कोल्ड ड्रिंक और पानी ले लिया तो फिर शीतल किचेन की तरफ वापस चल दी।

वसीम का मन हुआ की कोल्ड ड्रिंक लेते वक्त शीतल के ब्लाउज़ में झाँके या जब वो वापस जा रही थी तो उसकी गाण्ड की हलचल को देखें। लेकिन ऐसा करना उसकी चाल का हिस्सा नहीं था। उसने बड़ी मुश्किल से खुद पे काबू किया और ऐसे रिएक्ट किया जैसे कुछ हो ही जा रहा हो।

शीतल भी एक ग्लास में कोल्ड ड्रिंक लेकर बाहर आ गई और सामने बैठकर उस बातचीत का हिस्सा बनने की कोशिश करने लगी। उसका मकसद बस यही था की वो वसीम की नजरों के सामने रहैं, ताकी वसीम शीतल को अच्छे से देख पाए।

लेकिन वसीम ना तो शीतल की तरफ देख रहा था और ना ही उससे बात कर रहा था।

थोड़ी देर बाद शीतल उठी और बड़े प्यार से उसे खाना सर्व की। वसीम और विकास साथ में खाना खाए। शीतल जानबूझ कर वसीम के सामने ज्यादा और देर तक झकती थी ताकी वसीम उसके जिश्म को देख सकें।

वसीम बिल्कुल शरीफ बंदे की तरह बैठ रहा और शीतल पे एक नजर डालने के बाद उसने शीतल की तरफ देखा भी नहीं। लेकिन विकास का ध्यान बस शीतल पे ही था। शीतल एक तो वैसे ही इतनी खूबसूरत थी और उसमें ये साड़ी और फुल मेकप में वो कयामत ढा रही थी।

वसीम के लिए खुद को रोके रखना बहुत ही मुश्किल था लेकिन अगर शिकार को अच्छे से दबोचना है तो सही बक़त का इंतजार करना चाहिए ये सोचते हुए वो खुद पे काबू किए रहा।

विकास और बसीम में कई तरह की बातें होती रही और धीरे-धीरे बात वसीम के जिंदगी में आ गई और बसीम ने बताया की अपनी बेगम के इंतकाल के बाद उसने दुबारा निकाह नहीं किया।

विकास ने पूछ लिया- "इतना लंबा वक्त हो गया तो कभी शारीरिक कमी महसूस नहीं हुई.."

वसीम बस हँस पड़ा। उसने बताया की दो-तीन औरतों के साथ निकाह की बात चली लेकिन हर बार बात बिगड़ जाती थी। उसकी सारी कहानियों का सार यह था की उसने कभी किसी के साथ चीटिंग या बेईमानी नहीं की और हर औरत के साथ वो साफ और स्पष्ट तरीके से पेश आया था। लेकिन उन औरतों ने ही वसीम को चीट किया था।

विकास का ककोल्ड मन जागर्ने लगा और उसे लगा की उसकी बीवी इस तरह सजकर एक मुस्लिम मर्द के सामने खुद को पेश कर रही है। विकास का लण्ड अंदर टाइट हो चला।

वसीम थोड़ी देर बाद अपने कमरे में चला गया।

शीतल खाने बैठी तो विकास ने उससे कहा- "आज तो तुम वसीम चाचा में कयामत टा रही थी.."

शीतल हँस पड़ी और फिर मजाक में बोल दी- "लेकिन फिर भी बसीम चाचा ने तो देखा भी नहीं। बो कितने शरीफ और जेक इंसान हैं..."

विकास को शीतल की ये हँसी अजीब लगी और उसने भी हँसते हए मजाक में पूछा- "क्या तुम वसीम चाचा के लिए ही इतना सजी थी?"

शीतल मुश्कुरा दी और हँसकर बोली- "ही... तुम्हारे लिए इतना क्यों सजू? तुम तो ऐसे ही मुझे इतना प्यार करते हो..."

बात मजाक में कही गई थी लेकिन विकास की आँखों के सामने ये दृश्य चलने लगा की कैसे शीतल खाना खिलाते वक़्त झक रही थी बार-बार। वो अकेला बैठकर टीवी देख रहा था लेकिन उसकी आँखों के सामने ये दृश्य चल रहा था की वसीम के सामने झुकने पे शीतल का आँचल उड़ गया और वो हड़बड़ा कर वसीम पे गिर पड़ी थी, और वसीम उसकी चूचियों को मसलने और चूसने लगा। अपनी हसीन बीवी का उस बटे मर्द के साथ ये बात सोचकर विकास का लण्ड टाइट हो रहा था। वो खाना खाती हई शीतल को गौर से देखने लगा और सोचने करने लगा की कैसे वसीम उसके चिकने जिम को मसल रहा है, और कैसे शीतल उस बढ़े आदमी के साथ मस्ती कर रही है।

सोने जाते वक्त शीतल अपने सारे कपड़े उतार दी और नाइट सूट पहनकर सोने आ गई। उसे गुस्सा आ रहा था की उसकी इतनी मेहनत बेकार गई। कितने जतन से वो सजी थी, ताकी बसीम उसे देखकर अच्छा महसूस कर पाए लेकिन उसने देखा तक नहीं। उसे लगा था की शीतल को इस तरह अच्छे से देखकर उसे आराम मिलेगा। लेकिन उसे क्या पता था की यहाँ तो बसीम किसी तरह खुद पे काबू किए रहा, लेकिन रूम में जाते ही वो नंगा हुआ और शीतल का नाम जप्ते हुए लण्ड से वीर्य निकालकर बर्बाद कर दिया।

विकास का लण्ड टाइट था। उसने चोदने के लिए शीतल के जिश्म पे हाथ लगाया।

दी, और सोचने लगी- "मझ नहीं चदवाना इस बच्चे टाइम के लण्ड से। दो मिनट होगा नहीं की खुद तो सो जायेगा और मैं मरती रहगी। एक वा वसीम चाचा हैं जिनके पास इतना बड़ा मोटा मूसल टाइप का लण्ड है और जिसका वीर्ष वो मेरे पैंटी बा पे निकलता है, लेकिन सामने मैं हूँ तो देखता भी नहीं। दोनों का काम बस मुझे तड़पाना है। वो अकेले में तड़पेंगा लेकिन ये चैन की नींद सोएगा। इसलिए तुम भी तड़पो पातिदेव..." और शीतल सोतती हुई सो गई।

वसीम रूम में घुसते ही नगा हो गया और लण्ड आगे-पीछे करने लगा। उसका लण्ड फुल टाइट था- "आह्ह... मेरी रांड, क्या माल लग रही थी त... जी तो चाह रहा था की उसी वक़्त पटक कर तुझे चोद दूं। लेकिन क्या करेंगे जान, तर इस हसीन जिश्म को ऐसे नहीं पाना चाहता। जो त झुक कर चूची दिखा रही थी उसे जरन मसलंगा, और चुसंगा, बस तू थोड़ी और पक जा मेरी बडी बनने के लिए। फिर तेरे पूरे जिम में मेरा अधिकार होगा.."
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अगले दिन दोपहर होते ही शीतल वसीम के लण्ड का दर्शन करने अपनी जगह पहुँच गई। अब शीतल को बिल्कुल इर नहीं लगता था और वो ऐम स्टोरम में जा रही थी जैसे में कोई नार्मल सिंपल काम हो। उसने अपने मन में सोच लिया था की अगर वसीम में उसे देख भी लिया तो भी कोई परवाह नहीं। क्योंकी वसीम गलत काम कर रहा है, मैं नहीं। मैं तो ये पता लगाने छत पे छपकर बैठी थी की आखिर वो है कौन जो रोज मेरी पैंटी बा को गोली करता है?

शीतल अपनी जगह पे बैठ गई। रोज की ही तरह वसीम आया और फिर कपड़े चेंज करके अपने काम में लग गया। आज उसका लण्ड जरा ज्यादा टाइट था, शीतल का कल का रूप देखकर। उसने पैंटी ब्रा को भीगा दिया और अपनी जगह पर टांग कर अपने रूम में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया।

दो ही मिनट बाद शीतल स्टाररूम से बाहर निकली और आज सिर्फ पैंटी ब्रा लेकर नीचे चली गई। बाकी कपड़े उसने छत पे ही छोड़ दिए। सीदियों पे ही शीतल कपड़े में लगे वीर्य को सूंघने और चाटने लगी। उसे वसीम में बहुत गुस्सा आ रहा था? ये क्या पागलपन है यार। सामने होती है तो देखता भी नहीं, बात करना तो दूर की चीज है और गोज पैटी ब्रा में वीर्य गिराता है। इतनी ही आग है मन में मुझे लेकर तो मेरे से बात करो, मुझे देखा तो शायद आराम मिले, शायद अच्छा लगे। और अगर शरीफ ही बनें रहना है तो पं भी मत करो। मन में तो पता नहीं कितने अरमान पाल रखा होगा मेरे बारे में, कितनी तरह से चोद चुका होगा, लेकिन बाहर से इतना शरीफ बनता है की कहना ही नहीं?

शीतल भी रोज की तरह नीचे आकर नंगी हई और वीर्य चाटते हए वसीम के बारे में सोचती रही और चूत में पानी निकालने के बाद नंगी ही रही।

3:00 बजे शीतल के घर का दरवाजा नाक हआ। शीतल नंगी ही लेटी टीवी देख रही थी। वो हड़बड़ा गई और जल्दी से कपड़े टूटने लगी। वो पैंटी ब्रा पहनती तो लेट होता। इसलिए वो हड़बड़ी में बस नाइटगाउन पहनतें हए पूछी- "कौन है?"

उधर से वसीम की आवाज आई- "मैं हैं, वसीम खान..."

शीतल का दिल जोरों से धड़क गया की ये क्यों आए हैं? कहीं मुझे देख तो नहीं लिया? शायद सिर्फ पैंटी ब्रा लाई उठाकर तो इन्हें पता लग गया होगा की मुझे पता है। पता नहीं क्या बोलेगा? शीतल हड़बड़ाती हुई दरवाजा खोली- "आइए ना वसीम चाचा, अंदर आइए..."

वसीम बोला- "नहीं, बस जा रहा है। रात में आने में थोड़ी देर हो जाएगी। बस यही बोलने आया था। तो दरवाजा बंद कर लीजिएगा और मैं काल करेंगा तो दरवाजा खोल दीजिएगा..."

शीतल बोली- "ठीक है, कोई बात नहीं खोल देंगी। आइए ना चाप तो पीकर जाइए..."

वसीम- "ना ना चलता हैं अभी..." बोलता हुआ चला गया।

शीतल की जान में जान आई वसीम के जाने के बाद। लेकिन उसके मन उदास हो गया की अंदर आकर बैठकर कुछ बात तो करतें कम से कम। बैंकार में कपड़े पहनी। नंगी ही दरवाजा खोल देती, नहीं तो कम से कम कपड़े तो टीले रखती। पूरा टक ली। बेचारे एक तो कभी आते नहीं और आए भी तो मुझे कुछ तो दिखा ही देना चाहिए था। मैं इतनी हड़बड़ा गईं थी की दिमाग ही काम नहीं किया? और शीतल वसीम के ख्यालों में फिर से खो गईं।

बाहर जाते हए वसीम का लण्ड टाइट हो चुका था। शीतल अपने हिसाब से वसीम को कुछ नहीं दिखा पाई थी, लेकिन वसीम को हरामी नजर एक झटके में ये ताड़ गया था की रंडी ने अंदर कुछ नहीं पहना था। चूचियों की गोलाई में सटी नाइट गाउन को देखकर हो वा समझ गया की अंदर ब्रा नहीं था और इसलिए वसीम का लण्ड और टाइट हो गया था। रोड पे आने से पहले उसने अपने लण्ड को पायजामा में अइजस्ट किया और दुकान की तरफ चल पड़ा।

वसीम सोचने लगा- "रडी पक्का अंदर नगी होगी। चुदवाने के लिए मरी तो जा रही है लेकिन हाए रे संस्कारी नारी, कुछ बोल नहीं पा रही। बाकी कपड़े छोड़कर सिर्फ पैंटी बा इसलिए ले गई ताकी मैं जान स. की वो जानती है और मेरी हिम्मत बढ़ जाए। लेकिन मेरी रांड़, इतनी आसानी से तुझं थोड़ी मेरा लण्ड दें दंगा। जब तक तू पूरी मेरी रोड़ नहीं बन जाती तब तक तू तड़पेगी। तड़प तो मैं तुझसे ज्यादा रहा है गड़। तुझं घोड़ी जल्दी करनी चाहिए थी, तरी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी?"

सोचता हआ वसीम दुकान चल पड़ा और अपने प्लान को माडिफाई करने लगा। वो प्लान जिसमें एक सीधी सादी शरीफ पवित्र टाइप की लड़की को उसे अपनी रंडी बनाना था। उसके तन मन को अपने सामने समर्पित करवाना था। शीतल का समर्पण चाहिए था उसे।

रात में फिर शीतल विकास से वसीम के बारे में ही बात कर रही थी। शीतल ने कहा- "आज वसीम चाचा लेंट में आएंगे। दरवाजा बंद कर लेने बोले हैं। जब वो आएंगे तो काल कर लेंगे तब दरवाजा खोल देने बोले हैं..."

विकास- "ठीक है। ज्यादा रात होगी बन्या उन्हें?"

शीतल- "ये तो पूरी नहीं। बस इतना बोलें और चले गये। मैं तो अंदर आने बोली भी लेकिन आए नहीं.."

विकास मुश्कुरा दिया, और बोला- "अरे बाह... आकर बोल गये। कल देखकर गये तुम्हें तो आज फिर से देखने का मन किया होगा। क्या पहनी हुई थी तुम आज?"

शीतल बनावटी गुस्से में बोली- "नंगी थी... तुम्हें और कुछ तो सूझता है नहीं। तुमने देखा था ना उस दिन वा देखते भी नहीं मेरी तरफ..."

विकास- "तुम्हें दिखाकर थाई ना देखते होंगे। तुम्हारी जैसी हर को कोई बिना देखें रह ही नहीं सकता। लेकिन उसे शर्म आती होगी की वो उतना उम्रदराज होकर भी तुम्हें देख रहा है। लेकिन एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की लार तो जरगर टपकती होगी उनकी। मर्द जात ऐसे ही होते हैं। तुम्ही खोल देना दर बाजा, एक बार और देख लेंगे तुम्हें...

शीतल को विकास की बात में दम नजर आया- "उन्हें उम्र की वजह से शर्म आती होगी। हैं भी तो वो मेरे से गर्ने उम्र के। उफफ्फ... इसीलिए वो इंसान अंदर ही अंदर तड़प रहा होगा। मुझे ही कुछ करना होगा उनके लिए? सोचती हुई फिर वो विकास को बोली- "मुझे तो उन पर दया आती है। मुझे देखतें तक नहीं, बात करना तो दूर की बात हैं। लेकिन इतने सालों में अकेले ही अंदर-अंदर घट रहे हैं। मेरी छोड़ो, तुमसे भी तो बात करके मन का बोझ हल्का कर सकते हैं.."

विकास हम्म्म... बोलता हुआ करवट बदलकर सोने लगा और शीतल अभी का प्लान बनाने लगी- "दोपहर में तो वा हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। विकास अब सुबह ही जागने वाला था। शीतल का मन हआ की सच में नंगी ही जाकर दरवाजा खोल दूं। देखती ह बूढ़े मियां फिर देखते हैं की नहीं?" सोचकर वो खिलखिला दी।

शीतल वही नाइटगाउन पहनी हुई थी। विकास के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वा बाडी लोशन लेकर अपने सीने पे और चूचियों पे अच्छे से लगा ली। उसकी चूचियां तो ऐसे ही गोरी थीं, अब और चमक उठी। फिर उसने चेहरे को साफ किया और कीम और डी.ओ. लगा ली। अब शीतल ने नाइटगाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे खीच लिया और कालर को थोड़ा फैलाली। अब उसकी दोना गोलाइयां गहराईके साथ दिख रही थीं। शीतल अब दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी। शीतल को नींद ही नहीं आ रही थी।

सीतल मन ही मन सोच रही थी की कैसे दरवाजा खोलेंगी और क्या करेंगी? लेकिन शीतल की इतनी हिम्मत नहीं हई की बसीम से काई भी बात सीधी कर पाए। बा अपने नाइटी का ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गई तो कहीं वो मुझे गलत टाइप की ना समझ लें। फिर शीतल को खपाल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हैं, तो उन्हें लगेगा की मैं तो जाग कर उनका इंतजार कर रही थी। अगर मैं नींद में बही की किसी तरह की गलती हो सकती है। उसने फिर से बा को उतार दिया और नाइटगाउन को टोली कर ली। अब चलने पे उसकी चूचियां आराम से गोल-गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चूचितों में हो रही शिरकन साफ-साफ दिख रही थी। शीतल अपने बाल बिखरा दी और चेहरे को भी पानी से धोकर उनींदा टाइप का चेहरा बनाने लगी। रात के 11:00 बज गये थे और वसीम का अब तक काल नहीं आया था। शीतल अपनी पेंटी भी उतार दी थी। वो दो-तीन बार बाहर झांक कर भी आ गईथी वसीम आए या नहीं।

उसने सोचा की में ही पूछ लेती हैं लेकिन फिर उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद विकास के मोबाइल में काल आया। शीतल दौड़कर फोन उठाई तो वसीम चाचा लिखा हआ था। शीतल अपनी साँसों को कंट्रोल की और उनींदी आवाज में "हेला" बोली।

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