शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–३

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–३

नमस्कार दोस्तों आप सबका chut-phodo.blogspot.com में बहुत बहुत स्वागत है। आज की कहानी शीतल की रंडी बनने की चुदाई कहानी का तीसरा  भाग है अगर आपने इस कहानी का पिछला भाग नहीं पढ़ा है तो पहले वो भाग पढ़िए और फिर ये वाला भाग पढियेगा। कहानी का पिछला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–२

विशेष सूचना: ये कहानी और इसके सारे चरित्र काल्पनिक है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनका सादृष्य केवल एक संयोग है।

जब से शीतल बड़ी हुई थी ये पहली बार हुआ था की वो इस तरह घर में नंगी हुई थी और नंगी साई थी। यहाँ तक की शादी के बाद भी विकास से चुदवाने के बाद भी वो कपड़े पहनकर ही गम से बाहर निकलती थी और बाथरूम या किचेन जाती थी।

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विकास ने कहा भी था की यहाँ कौन है जो कपड़े पहन लेती हो, नंगी ही हो आओ बाथरूम से या नंगी हो सो जाओ। लेकिन शर्म की बजह से शीतल ऐसा कर नहीं पाती थी। चुदाई के बाद वो तुरंत ही कपड़े पहन लेती थी।


लेकिन आज वो अपने मन से घर में नंगी हो गई थी और एक के बाद एक और बार चूत में उंगली डालकर पानी निकाली थी।

लगभग 5:00 बजे शीतल की नींद खुली तो उसे खुद पे शर्म भी आई और आश्चर्य भी हआ की ये क्या हो गया है आज उसे? वो बाथरूम जाकर नहा ली और फिर फ्रेश होकर विकास के आने का इंतजार करने लगी।

आज रात को खाना खाते वक़्त शीतल विकास से बसीम चाचा के बड़े में पूरी की "वसीम चाचा अकॅलें क्यों रहते हैं, इनकी परिवार कहाँ गई?"

विकास को भी ज्यादा कुछ पता था नहीं तो जो मोटा मोटी पता था उसने बताया की- "काफी साल पहले एक आक्सिडेंट में इनकी बीवी की मौत हो गई थी और इसमें दूसरी शादी नहीं की और बच्चे बाहर रहते हैं."

शीतल को अपने स्वाभाव के अनुसार वसीम खान पे उसे दया आने लगी की एक इंसान इतने साल अकेले कैसे गुजार रहा है और ऐसे में अगर कोई मेरी जैसी लड़की उसके सामने रहेंगी तो वो भला खुद को कैसे रोक पाएगा? पुरुष के जिश्म की जरूरतें होती हैं और वसीम चाचा ने इतने सालों पे अगर खुद पे काबू किया हुआ है तो ये तो बहुत बड़ी बात है। ये तो सरासर मेरी गलती है की मैं ही इनकी परेशानी का सबब हूँ..."

शीतल फिर विकास से पूछी- "इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की। मुसलमान लोगों में तो 4 शादियां जायज हैं तो इन्होंने पहली पत्नी के मर जाने के बाद भी दूसरी शादी नहीं की..."

विकास हँसते हुए बोला- "मुझे क्या पता जान की इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की? लेकिन नहीं की और अकेले ही अपनी जिंदगी गुजर रहे हैं..."।

विकास हँसते हुए बोला- "मुझे क्या पता जान की इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की? लेकिन नहीं की और अकेले ही अपनी जिंदगी गुजर रहे हैं..."


शीतल की नजरों में अब वसीम खान का कद और ऊंचा हो गया। अगले दिन शीतल एक बजे के पहले काफी उधेड़बुन में थी। अपने दिमाग में चल रही जंग की वजह से वो अपनी पैंटी बा छत पे सूखने तो दे दी थी लेकिन अब क्या करें वो डिसाइड नहीं कर पा रही थी। कभी वा सोच रही थी की पैटी बा बापस नीचे ले आती है। फिर कभी सोचती की मेरी पैंटी बा को हाथ में लेने और उसपे अपना वीर्य गिरने से अगर वसीम चाचा को संतुष्टि मिलती है तो मैं इसमें खलल क्यों डाल? कहीं ऐसा ना हो की ये चीज भी छिन जाने से चा चा अपसेट हो जाएंग


अकेले इंसान के मन में बहुत सारी बातें चलती रहती हैं। इसीलिए जो वो कर रहे हैं करने देती है। मैं सोच लगी की मुझे पता ही नहीं है, और मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं।

शीतल यही सब काफी देर से सोच रही थी- "वा जो कर रहे हैं उन्हें करने देने में ही उनकी भलाई है। और उन्हें थोड़े ही पता है की मुझे पता है। आह्ह... कितनी अच्छी खुश्बू आती है लेकिन उसस। पता नहीं कल क्या हो गया था मुझे। मैं अब ऊपर जाऊँगी ही नहीं और देर से अपने कपड़े उठाकर लाऊँगी तब तक वीर्य सूख गया होगा। फिर वो सोचने लगी की उन्हें तो पता ही नहीं है की मुझे उनकी हरकत के बारे में पता है। तो उन्हें अपना मजा लेने देती हूँ और मैं अपना मजा लेती हैं। उन्हें वीर्य गिराकर सुकून मिलता है और मुझे सूंघकर चाटकर। सोचते-सोचते एक बजने वाले थे।

शीतल अचानक उठी और जाकर चाट पेस्टोररूम में छिप गई। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोरों से धड़क रहा था।

तय वक़्त में वसीम खान घर आया और रूम का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। शीतल की धड़कन और तेज हो गई। उसकी सांस लेने की आवाज भी लग रहा था जैसे बाहर जा रही हो। क्तीम लगी और गंजी पहनकर रूम से बाहर आ गया। फिर से उसनें पैंटी बा को उठा लिया और चूमता हुआ स्टाररणाम के दरवाजा के सामने खड़ा हो गया। उसने लंगी को साइड करके लण्ड को बाहर निकाला और आगे-पीछे करने लगा। आज शीतल को और अच्छे से लण्ड के दर्शन हो रहे थे। वसीम के लण्ड और शीतल के बीच में बस एक डेंद मीटर का अंतर होगा।
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शीतल के हिसाब से वसीम का लण्ड बहुत ही ज्यादा लंबा, काला, बहुत ही मोटा था और सामने से पूरा सुपाड़ा चमकता हुआ उसे दिख रहा था।

वसीम फुल स्पीड में मूठ मार रहा था और शीतल वीर्य के बाहर आने का इंतजार कर रही थी। उसे डर भी लग रहा था और मजा भी आ रहा था। वसीम के लण्ड ने पिचकारी की तरह तेज धार के साथ सफेद गादा वीर्य छोड़ दिया, जिसे बसौम ने ब्रा के दोनों कप में भर दिया और फिर तुरंत ही पैटी को लण्ड में दबाकर उसे भिगोने लगा। जब उसका लण्ड शांत हो गया तो उसने हमेशा की तरह शीतल की पैंटी ब्रा को उसकी जगह पे टांग दिया और रूम बंद करता हआ अंदर चला गया।


शीतल के लिए अब एक लम्हा भी गुजारना मुश्किल हो रहा था। वो सोची की वसीम चाचा तो अंदर चले गये

और अब 3:00 बजे बाहर आएंगे और दुकान जाएंगे। मैं कपड़े अभी ले जाऊँ या आधे घंटे बाद क्या फर्क पड़ता है? पशीनं सं तर बतर हो चुकी थी शीतल। किसी तरह उसने 5 मिनट गुजारे और फिर स्टाररूम से बाहर आकर ऐसे छत पे आई जैसे नामली नीचे से अपने कपड़े ले जाने के लिए आई हो। शीतल चुपचाप धीरे-धीरे करके अपने कपड़े उठाई और नीचे भागी।


वसीम खान रूम के अंदर से उसे कपड़े उठाते और नीचे ले जाते हए देख रहा था और उसके चेहरे पे मुश्कान फैल गई। ऐसी शातिर मश्कान जो शिकारी को तब होती है जब उसका शिकार चारा खाने लगता है।

शीतल दौड़ती हुई नीचे आई और बाकी सारे कपड़े को टेबल पे फेंकी और पैंटी बा को देखने लगी। पैंटी अलग अलग जगह में भीगी हुई थी, लेकिन ब्रा के दोनों कप वीर्य में चिप-चिप कर रहे थे। शीतल वीर्य को सूंघने लगी और तुरंत ही नंगी हो गई। उसने बीर्य से भरे ब्रा को अपने चूची से चिपका लिया। शीतल सोफे पे सीधा लेट गई और पैटी को सूंघने चाटने लगी और फिर उसी पैंटी को पहन ली। फिर उसने ब्रा का चूचियों से अलग किया। शीतल की गोरी गोरी गोल मुलायम चचियां वीर्य लगने की वजह से चमक रही थीं। शीतल ब्रा को अपने चेहरे में रख ली और पैंटी को नीचे करके चूत में उंगली करने लगी।

शीतल पागलों की तरह कर रही थी। वो उठकर बैठ गई और पैटी को उतार दी और ब्रा को पहन ली। फिर वो वा के ऊपर से चूची मसलती हई चूत में उंगली करने लगी। चूत में पानी छोड़ दिया और शीतल शांत हुई।

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दौड़कर नीचे आने और पैटी ब्रा पे लगे वीर्य को सघने चाटने की हड़बड़ी के चक्कर में शीतल अपने घर का दरवाजा बंद करना भूल गई थी।
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शीतल के नीचे आने के दो मिनट बाद वसीम खान अपने कपड़े पहनकर चुपचाप नीचे आ गया और छुप कर शीतल को देखने लगा। वैसे तो उसे शीतल को देखने के लिए मेहनत करना पड़ता लेकिन दरवाजा खुला होने की वजह से वो पर्दै की आड़ में सब कुछ लाइव देख रहा था। शीतल के देर होने के बाद बसीम खान मुश्कुराता हुआ अपने रूम में चला गया। शिकार दाना चग चुका था और अब बस शिकार करने की देरी थी।

अपने रूम में आकर वसीम खान नंगा हो गया और बैंड पें लेटकर शीतल के हसीन जिम के सपने देखने लगा की कितना मजा आएगा इस कमसिन काली को चोदने में? कितना मजा आएगा जब ये अपनी टाँगें फैलाकर मेरा मसल लण्ड अपनी टाइट चूत में लेगी? आह्ह... कितना मजा आएगा जब में कुतिया बनाकर इसकी गाण्ड मारेगा? बहुत दिनों तक सस्ती रडियों को चोदकर लण्ड को शांत किया है, अब वक़्त आ गया है की मेरे इस लण्ड को मस्त माल मिले। मुझे शीतल शर्मा को अपनी रडी बनाना है और इसे दिन रात चोदते रहना है।

रंडी को क्या लगता है मुझे पता नहीं की वो स्टाररूम में छिपकर मुझे देख रही थी। इसलिए तो पूरा लण्ड उसके सामने कर दिया था मैंने। मजा तो तब आएगा मेरी रंडी शीतल, जब मेरा लण्ड तेरे हाथ में होगा और त उसे चूसकर उसका वीर्य सीधा अपने मुँह में लेगी।

थोड़ी देर बाद शीतल उठी तो फिर से उसे अपने आप में गुस्सा आ रहा था। लेकिन आज का गुस्सा कल से कम था। इन 24 घंटों में उसके दिमाग में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी और शीतल अपने फेवर में अपने मन को समझा चुकी थी। शीतल नहाने जाने लगी तो उसकी नजर दरवाजे में पड़ी जो खुला था। उसका मुँह खुला रह गया, क्योंकी वो अब तक नंगी ही थी। हे भगवान... मैं पागल हो गई हैं। ऐसे दरवाजा खोलकर मैं नंगी घूम रही हैं और क्या-क्या कर रही हैं। कहीं किसी ने देखा तो नहीं? फिर वो सोचने लगी की अभी भला कौन आएगा क्योंकी मुख्य दरवाजा तो बंद ही था और वसीम चाचा तो 3:00 बजे नीचे उतरते हैं। वो रिलैक्स हो गई और दरवाजा बंद करके नहाने चली गई।


विकास के आने के बाद आज फिर शीतल और विकास का टापिक वसीम खान ही था। बातें करते-करते शीतल वसीम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रही थी। इसलिये बिकास से पछी- "वसीम चाचा इतने साल अकॅलें रहे कसं? क्या इन्हें औरत की कमी महसूस नहीं होती होगी, तुम तो एक हफ्तें में पागल हए जा रहे थे..."

विकास हँस दिया और बोला- "जिसके पास तुम जैसी हसीन बीवी हो वो एक हफ्तं क्या एक दिन में ही पागल हो जाएगा। मैं बहुत खुशनशीब हूँ की तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की मेरी बीवी है.."
अब हंसने की बारी शीतल की थी। वो हँसती हुई बोली- "इतनी भी खूबसूरत तो नहीं हूँ.."

विकास ने उसे पीछे से पकड़ लिया और बोला- "तुम माल हो, मस्त माल... गोरा चिकना बद्दन। तुम्हारी चिकनी पीठ, फिसलती हुई कमर और गोरी मुलायम छाती को देखकर मेरा लण्ड कई बार टाइट हो जाता है। मैं तुमसे दूर होकर तो पागल हो ही जाऊँगा."

ऐसी तारीफ सुनकर शीतल शर्मा गई। रात को शीतल विकास को बोली- "कल हम वसीम चाचा को अपने यहाँ खाना खिलाएंगे, रात में। तुम कल उन्हें बाल देना। जो इंसान इतने सालों से अकेला है, खद से सब कुछ कर रहा है, उसे हम कभी कभार लंच या डिनर तो खिला हो सकते हैं। वैसे भी वो हमारा मकान मालिक हैं और जब से हम आए हैं, तब से एक बार भी हमने उन्हें अपने घर नहीं बुलाया है.."

अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों से अच्छे रिश्ते बनाना, मिलना जलना, खाना खिलाना शीतल और उसकी परिवार की आदत में शुमार था। लेकिन जब से शीतल यहाँ आई थी तो वो अपने आप में और अपने मेहमानों में ही बिजी थी। कभी वो विकास के साथ घूमने चली गई थी तो कभी उसके पेरेंट्स या विकास के पेरेंट्स यहाँ आ गये थे। वसीम का मुस्लिम होना भी एक वजह था।

विकास बोला- "क्या बात है, आजकल बसीम चाचा का ज्यादा ही ख्याल रखा जा रहा है?" उसने शरारती मुश्कान के साथ में कहा था।

लेकिन शीतल शर्मा गई और अंदर से डर भी गई थी। वो बोली- "क्या तुम भी कुछ भी बोल देते हो। कहाँ वो 50-55 साल का आदमी और कहाँ मैं?"

शीतल सोते समय बेड पे आने से पहले अपनी नाइटी को टीला कर ली और विकास से सटकर लेट गई। विकास के लण्ड में थोड़ी हलचल मच गई। दोनों रोज सेक्स नहीं करते थे। कभी कभार तो एक सप्ताह 15 दिन भी हो जाता था। लेकिन आज शीतल मूड में थी। विकास उसे किस करते हुए उसका बदन सहलाने लगा। शीतल ने खुद को नंगी होने दिया और विकास के नंगे होने का इंतजार करने लगी। वो अच्छे से करीब से विकास का लण्ड देखने लगी। उसे लगा की ये तो किसी बच्चे का लण्ड है।

वसीम का लण्ड उसकी नजरों के सामने घूम गया। विकास का लण्ड वसीम के लण्ड का आधा भी नहीं होगा और उसके सामने बिल्कल पतला था। विकास का लण्ड स्किन से टका हआ था। वो हाथ में लेकर सहलाने लगी और स्किन को पीछे खींचकर सुपाड़े को बाहर करने लगी तो विकास को दर्द होने लगा और उसने मना कर दिया।

शीतल उठकर बैठ गई और लण्ड को दोनों हाथों में लेकर सहलाने लगी। शीतल के इस रूप को देखकर विकास साइज्ड था। अब तक शीतल सेक्स में विकास का बस साथ देती थी, वो भी कभी कभार और आज तो खुद लीड कर रही थी। दो दिन पहले भी शीतल ने पहल की थी, लेकिन आज तो उसने हद ही कर दी थी।

विकास शीतल के ऊपर आ गया और लण्ड को चूत पे रगड़ते हुए अंदर डालने लगा। शीतल विकास के लण्ड को चूमना चाहती थी, उसके वीर्य की खुश्बू लेना चाहती थी, लेकिन विकास तब तक उसके ऊपर आ चुका था। विकास ने लण्ड अंदर डाल दिया और 8-10 धक्के लगाते ही उसके लण्ड ने पानी छोड़ दिया। शीतल का तो समझ में ही नहीं आया की हुआ क्या है? वो तो अभी तक शुल भी नहीं हुई थी की बिकास का खेल खतम हो गया। विकास बगल में हो गया और करवट बदलकर सो गया।

शीतल अपनी प्यासी चूत लिए रात भर करवट इधर से उधर बदलती रही।


दिन में शीतल फिर से दोपहर का इंतजार कर रही थी। अब उसके मन में कोई बंद नहीं चल रहा था। उसने खुद को समझा लिया था की क्सीम खान कई सालों से अकला है और मैंने उसकी सोई ख्वाहिशों को जगा दिया हैं, जिसे वो छिपकर मेरी पैंटी ब्रा पे उतरता है। मुझे उससे उसकी खुशी नहीं छीननी है और मैं उसके वीर्य का सूंघकर चाटकर खुश हो रही हैं। उसे नहीं पता की मुझे पता है तो दोनों अपना-अपना मजा ले रहे हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

वो अपने वक्त में एक बजे से कुछ पहले स्टोरम में जाकर छिप गई। बसीम आया और आते वक्त ही शीतल की पैंटी बा को देखता गया, जिसे शीतल ने आज और अच्छे से फैलाया हुआ था। शीतल चाहती थी की वसीम को जो सुख मिल रहा है वो अच्छे से मिलें। उसने ट्रांसपेरेंट पैटी बा को छत पे टंगा था।

रोज की तरह वसीम रूम से लुंगी गंजी में आया और शीतल की पैंटी चा को उठाकर स्टोररूम के दरवाजा के सामने खड़ा हो गया। आज शीतल काल की तरह तेज सांस नहीं ले रही थी और न ही आज उसकी धड़कन तेज थी। वसीम ने आज अपनी लुंगी को नीचे गिरा दिया और नीचे से पूरा नंगा हो गया और मूठ मारने लगा।

शीतल का मुँह खुला का खुला रह गया। वसीम के लण्ड को इतने साफ में देखकर उसकी धड़कन बढ़ गईं। 10 मिनट तक क्सीम पेंटी और ब्रा को चमता चाटता रहा और लण्ड को आगे-पीछे करता रहा।

ऐसे वीर्य गिराया की शीतल को साफ-साफ वीर्य निकलता दिख रहा था। शीतल की पूरी पैंटी गीली कर दी क्सीम ने। फिर वो अपने लंगी को पहनकर पैटी बा को टांग दिया और रूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

वसीम के लिए भी इंतजार करना अब मुश्किल हो रहा था। वो जानता था की शीतल उसके सामने छिपकर उसके लण्ड को देख रही है, और अगर वो स्टोररूम के दरवाजे को खोल दे तो शायद शीतल खुद को चुदवाने से रोक नहीं पाए। लेकिन वो काई रिस्क नहीं लेना चाहता था। वो शीतल को पानेंट रंडी बनाना चाहता था अपनी। अपनी रखैल अपनी पालतू कुतिया बनाना चाहता था जो उसके इशारे पे नाचे। बड़े शिकार को फंसाने के लिए उसे अच्छे से चारा डालकर अच्छे से इंतजार करना होगा और वो कोई गलती नहीं करना चाहता था। वो दरवाजा के पीछे से देखने लगा।

आज वसीम के अंदर गये हुए दो मिनट भी नहीं हुए थे की शीतल स्टोर रूम से बाहर आई और अपने कपड़े समंट कर नीचे चली गई। उसने दरवाजा को अच्छे से लाक कर लिया और बाकी कपड़ों को टेबल में फेंक कर पैंटी को अपने चेहरा पे रख ली और नंगी हो गई। पैंटी में लगा बीर्य उसके चेहरा को भिगोने लगा और उसकी खुश्ब उसके सीने में भरने लगी। शीतल नंगी होकर गोज की तरह चूत में उंगली करने लगी और वीर्य को चाटने लगी।

वसीम नीचं आया था लेकिन दरवाजा बंद होने की वजह से वो वापस चला गया था। उसने सोचा की देखने के लिए इतना मेहनत क्या करना।

चूत से पानी निकालने के बाद शीतल नंगी ही सो गई और शाम तक नंगी ही अपना काम करती रही। बसीम के वीर्य की खुश्बू ने उसके अंदर की काम ज्वाला को प्रज्वल्लित कर दिया था। विकास के आने से पहले वो नहाकर फ्रेश हो गई और शाम के दावत की तैयारी करने लगी।

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शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–४

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