शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१

नमस्कार दोस्तों आप सबका chut-phodo.blogspot.com में बहुत बहुत स्वागत है। आज की कहानी मैं मैं आपको बताऊंगा कि कैसे एक अच्छे खाते पीते घर की बहू शीतल धीरे धीरे एक रण्डी में तकदीर हो जाती है।

विशेष सूचना: ये कहानी और इसके सारे चरित्र काल्पनिक है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनका सादृष्य केवल एक संयोग है।


•••••पात्र(किरदार)परिचय•••••

०१. विकाश: शीतल का पति, उम्र २५ वर्ष, बैंक का मैनेजर।

०२: शीतल: विकाश की पत्नी, उम्र २४ बर्ष, फिगर ३२–२४–३४ का, कामसिन काया।

०३. संजना: शीतल की बहन, उम्र २० बर्ष, फिगर ३२–२४–३२ की, बेहद हसीन।

०४. वसीम: उम्र ५० बर्ष, मकान मालिक।

०५. मकसूद: उम्र ५८ बर्ष, विकाश के बैंक में चपरासी।

०६. असलम: वसीम से उम्र में बड़ा।

०७. दीप्ति: शीतल की सहपाठी दोस्त, उम्र २३ बर्ष, बेहद खूबसूरत।

०८. गायत्री: विकाश की मां, खूबसूरत।

०९. बीनिता: विकाश की बहन, उम्र २३ बर्ष, फिगर ३६–२६–३६ की, हसमुख।

१०. आमिर: रिक्शावाला।

११. ताहिर: मोहल्ले का गुंडा। हट्टा कट्टा।

ये कहानी है शीतल की। शीतल के समर्पण की। मात्र २४ साल की शीतल अपनी कमसिन काया से किसी भी मर्द के जिस्म में उबाल ला सकती थी। अमीर और बड़े घर में पली बड़ी शीतल की नई नई शादी हुई थी। अभी वह मात्र २४ साल की थी और अपने जवान जिस्म और ढेरों अरमान लिए वह अपने पति के घर आई थी।

उसका पति विकास भी एक बैंक का मैनेजर था। शीतल बेहद खूबसूरत और मासूम चेहरे वाली लड़की थी। ३२–२४–३६ के शारीरिक गठन के जरिए वह किसी भी मर्द को खुश कर सकती थी।

शीतल एक बहुत ही शरीफ लड़की थी और यकीन मानीए कि उसका किसी के साथ कोई भी चक्कर नहीं था। बचपन से ही लड़के उसके ऊपर लट्टू थे लेकिन उसने हमेशा उन लड़कों को इग्नोर किया था। 

शीतल एक साफ माहौल में पली बड़ी थी। जहां उसने लोगों की मदद करना, शिष्टाचार से रहना यह सब कुछ सीखा था। उसकी शादी के अभी सिर्फ 3 महीने ही हुए थे कि उसके पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया। शीतल अपनी जिंदगी से पूरी तरह से खुश थी और उसे अपने जीवन में कोई समस्या नहीं थी। यह 3 महीने बड़े मजे से गुजरे थे शीतल के। अपने पति के साथ एक शानदार हनीमून मना कर लौटी थी। एक लड़की को जो जो चाहिए सब कुछ मिला था उसे। विकास हैंडसम था और उससे बहुत प्यार भी करता था। वो उसे अपने साथ दूसरे शहर ले जाना चाहता था लेकिन ठीक-ठाक घर ना मिल पाने की वजह से वह उसे अपने साथ नहीं ले जा पाया।

हड़बड़ी में विकास को सही घर नहीं मिल रहा था। इसलिए उसी के बैंक के चपरासी महसूद ने उसे कुछ घर दिखाएं और कई घरों के बारे में बताया और फिर विकास ने उन घरों में से ही एक घर को पसंद कर लिया और एडवांस किराया भी दे दिया।

विकास ने जो घर किराए में लिया था वह घर 50 साल के वसीम खान का था। उसका घर बहुत बड़ा था और उसने विकास को अपने घर का ग्राउंड फ्लोर किराए पर दे दिया था। ऊपर छत पर दो बेडरूम और किशन था जिसमें वसीम खुद अकेला रहता था। सीढ़ी से ऊपर जाते ही लेफ्ट साइड में एक छोटा सा कमरा था जिसमें बस कचरा भरा हुआ था। उसके बाद खाली जगह थी जहां कपड़े सुखाने की जगह थी और उसके बाद वसीम का रूम था।

छत में भी 4 फुट की एक बाउंड्री थी। नीचे का बड़ा ग्राउंड फ्लोर विकास और शीतल को मिल गया था। 4 रूम, बड़ा सा डायनिंग हॉल किचन सब मिल गया था विकास को और बहुत ही कम किराए पर। शीतल भी विकास के साथ नए शहर और नए घर में शिफ्ट हो गई। शीतल बहुत खुश थी, उसके सास, ससुर, ननद, मम्मी, पापा और बहन संजना भी यहां कई दिन रुक कर गए थे। सबको घर बहुत अच्छा लगा।

शीतल बेहद ही हसीन थी और क्योंकि शीतल के घरवाले मॉडर्न विचारों वाले थे इसलिए उसके कपड़े भी मॉडल टाइप के होते थे। हालांकि वह हमेशा इंडियन कपड़े ही पहनती थी। लेकिन थोड़े नए स्टाइल के। उसके लिए यह सब मामूली बातें थी। लेकिन जब वो लोगों के बीच में होती थी तो किसी सितारे की तरह काफी दूर से नजर आती थी। नई-नई शादी होने की वजह से उसका जिस्म और खिल गया था और उसके बदन के ऊपर सोने के गहने जैसे मोहल्ले में आग लगा रहे थे।

दो-तीन महीने होते होते शीतल की खूबसूरती के चर्चे पूरे मोहल्ले में होने लगे। शीतल जब भी घर से बाहर निकलती तो वह भीड़ में भी चमक जाती थी। लेकिन शीतल इन सब बातों से बेखबर थी और मजे से अपनी जिंदगी जी रही थी। विकास भी ऐसी खूबसूरत बीवी पाकर बहुत खुश था। हालांकि विकास ने उससे कहा था कि जब तुम घर से बाहर निकलती हो तो थोड़े ढके हुए कपड़े पहनना। लेकिन शीतल का हमेशा जवाब होता था कि, "ऐसा तो बचपन से ही होता है।" विकास का मन हुआ था कि उसे बोले ऐसे कपड़े कभी यहां पर मत पहनना। लेकिन इससे अगर शीतल को बुरा लगे इसलिए वो उसको कुछ नहीं बोल पाया।

वसीम खान यहां अकेला रहता था। उसके घर में कोई नहीं था। उसकी बीवी और बच्चे की किसी एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। उसकी एक जूते की दुकान थी और वह सुबह 9:00 बजे अपनी दुकान पर चला जाता था। और फिर दोपहर को आता था। घर आकर वह 2 घंटे तक आराम करता था। और फिर 3:00 बजे चला जाता था। फिर वह रात में 8:00 बजे आता था। उसके रोज का यही नियम था। विकास भी सुबह 9:00 बजे बैंक चला जाता था और फिर सीधे शाम को 6:00 बजे घर आता था। दोनों की जिंदगी बड़े प्यार और मजे से कट रही थी। दोनों फिर से कई सप्ताह के लिए बाहर से घूम आए थे। विकास और शीतल दोनों में से कोई भी अभी बच्चा नहीं चाहता था। इसलिए शीतल 6 महीने से प्रेगनेंसी रोकने वाली गोली खाती थी। दोनों की मर्जी अभी खूब मस्ती करने की थी। शीतल को यहां आए 3 महीने हो चुके थे और उन लोगों का जीवन मजे से गुजर रहा था।

शीतल अपने कपड़े को छत पर सूखने देती थी। वसीम खान जिस माले में रहता था उसके सामने की बालकनी खाली थी और कपड़े सुखाने के लिए भी सिर्फ वही जगह थी। एकदिन जब शीतल जब अपने कपड़े सूखने के बाद अपने रूम में ले आई और उसे समेटने लगी तो उसे अपनी पैंटी के चूत का हिस्सा थोड़ा सख्त हो गया था। उसे लगा कि शायद कपड़े ठीक से साफ नहीं हुई है। उसने इसको इग्नोर कर दिया।

अगले दिन भी वही हुआ उसकी पैंटी के चूत वाले हिस्से में काफी ज्यादा मात्रा में वही सख्त चीज गिरी हुई थी। जब उसने गौर से अपनी पेंटी को देखा तो उसे पता चला की वह चीज सफेद रंग की है। शीतल को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या है?

कुछ दिनों के बाद शीतल ने एक डिजाइनर फैंसी ब्रा और पैंटी खरीदी थी जो बिल्कुल ही नई थी और फूली ट्रांसपेरेंट थी। अगले दिन जब शीतल छत से कपड़े उतारने गई तो उसकी गुलाबी ट्रांसपेरेंट पेंटी का चूत का एरिया पूरी तरह से टाइट था। शीतल ने जब गौर करके देखा तो उसे फिरसे वही सफेद चीज का दाग उसमें नजर आया। नई पैंटी थी वो, दाग लगने का तो कोई सवाल ही नहीं था।

शीतल उस पेंटी को अच्छे से छूकर देखने लगी और फिर उसे अपनी नाक के सामने ले गई। उसमें एक अजीब सी गंध थी जो उसे बहुत अच्छी लगी। शीतल फिर उसे सूंघने लगी। दो चार बार सूंघने पर भी उसका मन नहीं भरा तो फिर अपनी पेंटी को चाट कर भी देखने लगी। उसे बहुत अच्छा लगा। लेकिन वह कुछ समझ नहीं पाई। शीतल के दिमाग में बस वही खुशबू और वही टेस्ट घूम हुआ था।

अगले दिन शीतल थोड़ा जल्दी अपने कपड़े छत से नीचे ले आई और फिर कपड़े नीचे लाने के बाद वह अपनी पैंटी को देखने लगी। उसने देखा तो उसे पता चला कि उसकी पैंटी के ऊपर कुछ चिपचिपा सा गिरा हुआ था। वह फिर से उसको सूंघने लगी और उसे पिछले दिन से भी ज्यादा अच्छा लगा और फिर वह अपनी पैंटी के ऊपर लगी हुई चीज को चाटने लगी।

शीतल को बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन वह यह नहीं समझ पाई कि यह आखिर है क्या? ना तो उसने कभी अपने पति का लंड चूसा था और ना ही विकास ने कभी उसे ऐसा करने को कहा था। विकास ने शीतल की चूत को कभी चांटा तक नहीं था। शीतल तब तक ठीकसे पोर्न भी नहीं देखती थी। दो चार बार उसकी सहेलियों ने उसे पोर्न दिखाया था। लेकिन थोड़ा सा ही देखकर उसने मना कर दिया था। उसने कहा था कि, "मुझे यह सब गंदी चीजें नहीं देखनी है।"

शीतल के मन में उस खुशबू और टेस्ट की याद बस चुकी थी। वह पेंटी ब्रा सभी को सूंघकर देखने लगी। लेकिन उसे ऐसा कुछ नहीं मिला।

अगले दिन शीतल थोड़ा और जल्दी कपड़े को छत से लेकर आई ।उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली थी और उसमें गाढ़ा सफेद रंग का क्रीम जैसा कुछ था। जिसे देखकर उसका दिमाग सुन्न हो गया कि यह तो वीर्य है। उसकी शादी कुछ ही महीने हो चुके थे और वह वीर्य का कलर जानती थी। पहले तो उसका मन घृणा से भर गया और उसे गुस्सा भी बहुत आया कि कौन है वह कमीना गुंडा इंसान जो इस तरह की नीच हरकत कर सकता है? लेकिन फिर उसने उसको अच्छे से सूंघा और सारा वीर्य चाट कर खा लिया। उसे पहले भी बहुत मजा आया था लेकिन आज यह सोचकर उसकी चूत गीली हो गई कि वह किसी अनजान आदमी का वीर्य सूंघ और चाट रही है जो उसके अपने पति के साथ भी नहीं किया है। शीतल के दिमाग में यही सब चलता रहा।

शीतल ने उस रात बेड पर पहली दफा विकास से अपनी खूब चुदाई करवाई। लेकिन आज पहली बार उसे ऐसा लगा कि जितना मजा उसको आना चाहिए था उतना मजा उसको नहीं आया। उसे लगा कि विकास को और अंदर तक डालना चाहिए था। उसे लगा कि विकास को और देर तक उसकी चूत को चोदना चाहिए था। लेकिन वह यह सब बातें अपने पति से नहीं कह सकी और करवट बदल कर उस वीर्य की खुशबू को याद करके सो गई।

अगले दिन संडे था और विकास घर पर ही था और वसीम चाचा कहीं बाहर गए हुए थे। आज शीतल जब अपने कपड़े लेकर आए तो उसकी पेंटी बिल्कुल जैसी उसने रख कर गई थी वैसे ही रह गई। उसमें कोई वीर्य नहीं था 

फिर वह जब कपड़े लेकर नीचे आई तो विकास ने उससे पूछा, "क्या हुआ अचानक उदास हो गई क्यों?" लेकिन शीतल ने कुछ जवाब नहीं दिया। रात में शीतल फिर से चुदवाना चाहती थी क्योंकि उसकी प्यास नहीं बुझी थी। लेकिन अपने संस्कारों और शरमाने की वजह से वह विकास के सामने इजहार नहीं कर पाए। विकास अपनी प्यासी बीवी को यूं ही छोड़ कर सो रहा था।

अब शीतल उस खुशबू के लिए पागल होने लगी थी। दूसरे दिन शीतल दोपहर में छत पर रहे स्टोर रूम के अंदर छुप गई थी और देखने लगी थी की क्या होता है। कौन है जो अपना वीर्य उसकी पेंटी में गिरा कर चला जाता है।

थोड़ी देर में वसीम खान अपने घर आया और अपने रूम में चला गया। अपने रूम में आते वक्त उसने शीतल की पेंटी ब्रा को देखा जो आज उसने सूखने के लिए रखी थी। शीतल के दिमाग में अभी तक वसीम खान का ख्याल नहीं आया था कि वह ऐसा कर रहा होगा।

वसीम खान को देखने के बाद उसे लगा कि वसीम चाचा तो 2 घंटे तक अपने रूम में ही रहेंगे। तब तक तो मैं यहीं पर फंसी रहूंगी। उसे लगा था कि वो छत पर छिपकर देखेगी कि कौन उसकी पेंटी के साथ क्या करता है। लेकिन अब तो लग रहा था कि उल्टा वही फंस गई है 2 घंटे के लिए। कहीं वसीम चाचा की नजर मुझ पर पड़ गई तो सोचेंगे कि मैं छुप कर उन्हें देखती हूं।

शीतल वहां से निकलने का प्लान बना रही थी लेकिन वसीम के रूम का दरवाजा खुला था तो वह डर से स्टोर रूम से बाहर नहीं निकल पा रही थी। थोड़ी देर बाद वसीम चाचा अपने रूम से बाहर आए और फिर शीतल की पेंटी को रस्सी से उतारा और उसको मुंह में लेकर चूसने और सूंघने लगा। मानो कि वह शीतल की चूत को सूंघ रहा हो। उसका लंड सामने से बाहर निकला हुआ था। और फिर वह अपने हाथ से जोर-जोर से मुठ मारने लगा।

वसीम शीतल की पेंटी को लेकर स्टोर रूम के सामने आ गया जहां उसे कोई देख नहीं सकता था। शीतल स्टोररूम के दरवाजे के पीछे थी और दरवाजे में बने सुराख से बाहर झांक रही थी। उसकी सांसे रुक गई थी इस चिंता में की कही वसीम ने उसे देख लिया तो क्या होगा? वो दरवाजे के ठीक सामने खड़ा अपने लंड को आगे पीछे करता रहा। उसने शीतल की पैंटी हो अपने लंड पर लपेट लिया और अपने मुंह से आह ह ह..... करके मुठ मारने लगा।

वसीम उसी तरह लंड हिलाता हुआ शीतल की ब्रा के पास गया और उसे भी उठा लाया। फिर वह अपनी उंगलियों से उसकी ब्रा को दबाने लगा जैसे कि वह शीतल की चूची को मसल रहा हो। और फिर वो चूची वाली जगह को मुंह में लेकर चूसने लगा जैसे शीतल की ब्राउन चूची को चूस रहा हो।

शीतल को बोहोत गुस्सा आया ये सोचकर की ये इंसान कितना गन्दा इंसान है। जिस इंसान को वह इतनी इज्जत करती थी वही उसकी पेंटी और ब्रा कुछ को हाथ लगाता था। लेकिन वसीम खान को अपनी ब्रा और पैंटी चूसते हुए देख अनजाने में ही उसका हाथ अपनी चूत पर आ पहुंचा। उसे वहां पर थोड़ा गीला गीला लग रहा था।

वसीम खान अपने लंड को शीतल की पेंटी में लपेटकर मुठ मारे ही जा रहा था। थोड़ी ही देर में उसके लंड का पानी निकलने जा रहा था। उसने ब्रा को नीचे गिरा दिया। और पैंटी को हाथ में लेकर ऐसे फैलाया जिससे जिस जगह पे चूत रहती है वो जगह ऊपर आ जाए। वसीम ने पैंटी को हाथ में पकड़ा और अपना वीर्य पैंटी में गिराने लगा।

अब शीतल को वसीम का लंड साफ साफ दिख रहा था। इतना बड़ा साइज देखकर उसका मुंह खुला का खुला रह गया। किसी मर्द का लंड इतना बड़ा हो सकता है यह उसने सपने में भी नहीं सोचा था। इससे पहले उसने अपने पति का लंड ही देखा था। लेकिन वह इतना बड़ा नहीं था।

वसीम के लंड से एक मोटी सी धार निकली और शीतल की पेटी में जमा हो गई। इतना सारा वीर्य !!! इतना तो विकास कई हफ्तों में भी ना निकल पाए। उसने शीतल की पेंटी वीर्य से भर दी और उसे स्टोर रूम की दीवार से बाहर निकले लोहे के झाड़ पर टांग दिया। और फिर उसने ब्रा के कप को भी वीर्य से भर दिया। फिर अपने लंड को दूसरे कप से भी अच्छे से पोंछ कर साफ कर लिया।

शीतल को सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था की इतने बड़े मोटे काले लंड से कितना सारा गाढ़ा सफेद वीर्य बाहर निकल रहा है और उसकी ब्रा और पैंटी को भर रहा है। शीतल की चूत रस से एकदम भर चुकी थी, एकदम गीली हो चुकी थी उसकी चूत। वसीम ने ब्रा और पेंटी दोनों को अपनी अपनी जगह पर अच्छे से टांग दिया और अपने लंड को ठीक करता हुआ अपने रूम में चला गया।

कहानी का अगला हिस्सा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें👇

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–२

हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें👇

https://t.me/hindi_kahani_chudai