शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१४

शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१४

नमस्कार दोस्तों आप सबका chut-phodo.blogspot.com में बहुत बहुत स्वागत है। आज की कहानी शीतल की रंडी बनने की चुदाई कहानी का तीसरा  भाग है अगर आपने इस कहानी का पिछला भाग नहीं पढ़ा है तो पहले वो भाग पढ़िए और फिर ये वाला भाग पढियेगा। कहानी का पिछला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें शीतल की रण्डी बनने की चुदाई कहानी–१३

विशेष सूचना: ये कहानी और इसके सारे चरित्र काल्पनिक है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनका सादृष्य केवल एक संयोग है।

वसीम बोला- "मेरी नजर में तो दोनों फरिस्त हैं। ये आपकी महानता है की आपने अपनी बीवी का साथ दिया। एक अंजान इंसान की मदद के लिए इतना बड़ा फैसला लिया आपने। आप महान है विकास बाब.."

विकास धीरे से बोला- "महान नहीं चूतिया हूँ मैं.." जिसे कोई सुन नहीं सका लेकिन सबको उसका मूड समझ में आ रहा था।

वसीम के बगल में रखी शीतल की पेंटी को देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया था। उसे यकीन हो गया था की दोनों अभी भी सेक्स कर रहे थे। या तो सुबह का एक पाउंड हो चुका था या हो रहा था।

विकास- "तो सुहागरात हो गई या कुछ बाकी है? अगर बाकी है तो आप लोग कर सकते हैं अभी, में रूम में चला जाता है." बोलता हुआ विकास सोफा से उठ खड़ा हुआ, और उसकी आवाज में तल्खी आ गई थी।

वसीम तुरंत बोला- "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप विकास बाबू?'
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विकास बोला- “नहीं अगर सुहागरात का कोटा पूरा नहीं हुआ है, या अभी और करना है तो आप लोग कर लीजिए, मैं गम में सो जाता हैं..."

फिर विकास शीतल से बोला- "शीतल, जाओ वसीम चाचा के साथ सुहागरात पूरी करो। उन्हें कोई कमी ना रह जाए...' बोलता हुआ वो शीतल की बौंह पकड़ा और वसीम की तरफ जाने को पुश किया।

शीतल हड़बड़ा गई- "ये क्या कर रहे हो विकास? ये क्या हो गया तुम्हें आते ही..."

वसीम भी बोला- "विकास बाबू ये कैसे कर रहे हैं आप?"

विकास बोला- “सही कह रहा हूँ। अगर आपको कुछ और करना है तो कर लीजिए। पूरा कर लीजिए अपनी सुहागरात। और अगर हो चुकी है तो अब आप जा सकते हैं यहाँ से। हम इससे ज्यादा आपकी मदद नहीं कर सकते..." विकास दोनों हाथ जोड़कर वसीम के सामने खड़ा था।

विकास फिर बोला "जितनी महानता मुझे दिखानी थी, दिखा चुका है। अब और नहीं..."

वसीम चकित सा होने की आक्टिंग कर रहा था। ये तो जैसा उसने सोचा था उससे भी अच्छा हो रहा था उसके प्लान के लिए। उसे यकीन नहीं था की विकास इस तरह गुस्से में आ जाएगा। उसने शीतल पे जो जान चलाया था, अब उसके असर होने का इंतजार कर रहा था वो।

शीतल अब चीख पड़ी- "विकास, ये क्या हो गया तुम्हें आते हो। तुम्हें नहीं पसंद था ता मना कर देते। तुमसे पूछूकर ना वसीम चाचा को ही बोली थी मैं। यहां तक की तुम्हारे हाँ बोलने के तीन दिन बाद इन्हें ही कहा मैंने।
और इन तीन दिनों में तुम्ही मुझे समझा रहे थे की मुझे करना चाहिए वसीम चाचा के साथ। अब अचानक क्या हो गया तुम्हें?"

विकास भी चीख पड़ा- "तो हो गया ना? चुदवा ली ना? मना ली ना सुहागरात? मैं उसके लिए तो कुछ नहीं बोल रहा। और अगर कुछ करना है तो कर ला अभी। मैं तो यही कह रहा है। लेकिन जिंदगी भर तो सुहागरात नहीं मनेगी ना?"

वसीम कुछ बोलने की सोच रहा था। लेकिन शीतल फिर बोल पड़ी- "तो कौन मना रहा है सहागरात? में तो जा ही रहे थे की में इन्हें नाश्ता करने के लिए रोक ली। तम पता नहीं क्यों आते ही शुरू हो गय?"

विकास बोला- "हाँ... नंगी होकर रोक ली थी ना... बो पैटी तुम खुद उतारी या यं उतारे? शीतल सुनो, मैं झगड़ा नहीं करना चाहता। जो होना था हो चुका, लेकिन अब ये और नहीं होगा। मेरी इजाजत से हुआ, मैं चूतिया था जो ये पागलपन कर बैठा। लेकिन अब और कुछ नहीं होगा..."

फिर विकास वसीम को बोला- "प्लीज वसीम चाचा, इससे ज्यादा मदद में आपकी नहीं कर सकता। आप जाइए..."

शीतल पेंटी और नाइटी की बात सुनकर सकते में आ गई की विकास कह तो सही हो रहा है। लेकिन उसे लगा की अगर वो अभी नहीं बोल पाई तो बाद में भले वो विकास को मना भी ले, लेकिन फिर भी वसीम उसे फिर कभी नहीं चोदेगा। नहीं नहीं, वसीम को तो मुझे चोदना ही होगा।

शीतल तुरंत बोल पड़ी- "विकास तुम समझ क्यों नहीं रहे? ये क्या पागलों के जैसी बातें किए जा रहे हो? जब तुम्हें नहीं पसंद था तो मुझे मना करना चाहिए था, रोकना था। लेकिन तब तो बहुत महान बन रहे थे और उल्टा मुझे ही समझा रहे थे। में तीन दिन तक यही सोचकर रुकी रही की मेरे जिश्म में मेरे पति का हक है, वो किसी और को क्यों दूं? लेकिन जब तुमने मुझे समझाया तब फिर मैं सोची की मुझे अब कर ही लेना चाहिए."

विकास फिर चीखते हुए बोला- "तो कर ली ना... तो अब क्या जिंदगी भर चुदवाते रहना है?"

शीतल तुरंत उससे ज्यादा जोर से चीखते हुए जवाब दी- "हौं, अब अगर एक बार चुदवा चुकी हूँ तो और जरूरत पड़ी तो जिंदगी भर चुदवाऊँगी..."

विकास शीतल को बस देखता ही रह गया।

शीतल फिर बोली- "अगर एक बार सेक्स करने के बाद भी हालत बही रहे तो फिर फायदा क्या हुआ इतना बड़ा फैसला लेने का। अब जब इन्हें अपना जिश्म दें हो चुकी हैं तो जितनी बार जरवत होगी उत्तनी बार दूँगी..."

विकास को शीतल से इस तरह की उम्मीद नहीं थी। वो भी गस्से में बोल पड़ा- "तो फिर इन्हीं की मदद करती रहा, मुझे छोड़ दो.." वो सोफे पे गिरता हुआ सा बैठ रहा।

वसीम सोफा से उठ खड़ा हुआ और विकास और शीतल दोनों को कहा- "चुप हो जाओ, प्लीज चुप जो जाओ। उफफ्फ... मुझे माफ कर दो। ये मेरी गलती है। कल रात में जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाना और मुझे माफ कर देना। मैं बहुत ही बगैरत और बेकार इंसान हूँ। मुझे ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए था। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई.." बसौम रुआंसी आवाज में बोला। उसका चेहरा ऐसा था जैसे वो कितने दर्द में हो और अब रो देगा।

शीतल तुरंत बोली- "आप ऐसा क्यों कह रहे है? आपकी कोई गलती नहीं है। आप तो इंसान नहीं देवता हैं। आपनें तो खुद को पूरी तरह रोका हुआ था। कल जो कुछ भी हुआ वो हमारी मज़ी में हुआ और मेरे कहने पे आपने किया। अब कोई अगर अपने वाद से मुकर जाए तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं?"

वसीम की आँखों में आँसू आ गये थे। वो सिर को नीचे झुकते हुए बोला- “नहीं, ये पूरी तरह मेरी गलती है। मुझे ये समझना चाहिए था की मैं किसी और की बीवी के साथ अपने अरमान पूरे कर रहा हूँ उफफ्फ... बेहद घटिया इंसान हूँ मैं। मेरी वजह से एक हँसता खेलता परिवार उजड़ रहा है। मैं बेहद शर्मसार हूँ। मैं खुद को सम्हाल नहीं पाया। कुछ भी हो, तुम लोगों के कहने के बाद भी अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो बहुत नीचुकाम किया है मैंने...

कोई कुछ नहीं बोला।

वसीम- "नहीं ये गलत है, मैं अपनी हवस मिटाने के लिए किसी और की शादीशुदा जिंदगी में आग लगाने लगा। मुझे जिंदा रहने का कोई हक नहीं। मुझे यहां से जाना होगा। अगर मैं यहाँ रहा तो फिर ये घामला उजड़ जाएगा। मेरे जैसे बगैरत और नीच इंसान का यहाँ तो क्या इस धरती पें कहीं रहने का कोई हक नहीं है। जहाँ भी रहँगा किसी ना किसी का बसा बसाया आशियाना ही उजाग...' बोलता हुआ क्सीम एक झटके में बाहर निकल गया।

शीतल और विकास हक्के-बक्के खड़े रह गये।

जब तक काई कुछ समझता वसीम बाहर निकलकर जा रहा था।

शीतल तुरंत दौड़कर बाहर गई लेकिन तब तक वसीम रोड पे उतरता हुआ दूर जा चुका था। शीतल एक पल के लिए भी कुछ नहीं सोची और उसी हालत में रोड में आ गई और दौड़ते हए वसीम के पीछे जाने लगी। शीतल भल गई की वो बस नाइटी में हैं और दौड़ने की वजह से उसकी चूचियां गोल-गोल हिल रही हैं। वो भूल गई की रोड पे मौजूद सभी लोग नाइटी के अंदर उसके जिश्म का मुआयना कर रहे हैं। वो उसी तरह अपनी चूचियों और गाण्ड को हिलाते हुये रोड प चलती रही। शीतल भले नाइटी पहने थी लेकिन लोगों की नजरों में वो नंगी ही थी।

शीतल ने चार-पाँच बार वसीम चाचा, वसीम चाचा बोलकर आवाज भी दी। लेकिन वसीम ने उसे सुना ही नहीं। जब शीतल को लगा की वो वसीम को नहीं पकड़ पाएगी तो वो वापस तेजी से चलते हए घर आ गई। रोड पे खड़े लोगों को पोर्न मूवी का टेलर देखने मिल गया और सबके लण्ड इस हश्न की देवी को देखकर टाइट हो गये

वसीम में शीतल की आवाज सुन ली थी। वो मन ही मन बहुत खुश हुआ की उसकी रंडी उसकी खातिर रोड में नंगी ही दौड़ पड़ी है।

शीतल को इस तरह वसीम के पीछे जाते देखकर विकास को हँसी आ गई की उसकी 23 साल की बीबी एक 55 साल के बूढ़े आदमी के लिए पागल हो गई है। उसका जी चाहा की घर का अंदर से लाक कर लें, लेकिन वो कोई तमाशा नहीं करना चाहता था।

शीतल घर आते ही अपने फोन से वसीम को काल करने लगी लेकिन उसका मोबाइल स्विच आफ हो चुका था। शीतल विकास को बोली- "जल्दी से जाकर वसीम चाचा को लेकर आओ, कहीं वो कुछ कर ना लें। अगर उन्हें कुछ हो गया तो जिंदगी भर ना मैं खुद को माफ कर पाऊँगी ना तुम्हें..."

विकास कुछ नहीं बोला और रूम में चला गया।

शीतल भी उसके पीछे-पीछे रूम में आ गई, और कहा- "प्लीज विकास ऐसा मत करो। तुम्हें जो भी कहना है मुझे कह लो, लेकिन वसीम चाचा को रोक लो। वो बहुत भले इंसान हैं। उन्होंने तो हर बार खुद को रोका था। इसमें भला उनकी क्या गलती है? मैंने तो सोचा की हम उनकी मदद कर रहे हैं। किसे पता था की तुम इस तंवर के साथ आओगे। प्लीज विकास उठा ना। वो इंसान अपनी जान दे देगा.." कहकर शीतल रोने लगी थी।

विकास भी वसीम के इस तरह चले जाने से चकित था। शीतल के आँसुओं में रही सही कसर भी पूरी कर दी। उसका गुस्सा अब उत्तर गया था और वो सोचने लगा "सच में वसीम चाचा की क्या गलती थी? वो तो खुद को रोक हए थे। मेरे और शीतल की मर्जी होने के बाद उन्होंने शीतल के साथ सेक्स किया। मैंने तो शीतल को उकसाया ही था चुदवाने के लिए। कल भी तो मैंने ही कहा था की वसीम चाचा का पूरा साथ देना। आह्ह... पता नहीं कल रात से मुझे क्या हो गया है? उफफ्फ... मैंने शीतल को भी क्या-क्या कह दिया? इसकी भी कोई गलती नहीं है। में बेचारी तो बस मदद कर रही थी वसीम चाचा की। दूसरे को ये दुखी देख ही नहीं पाती है। ये भी तो मुझसे पूछूकर ही सब कुछ की और मैंने अच्छा करते हुए भी सब कुछ बुरा कर दिया।

विकास उठा और रोती हुईशीतल को अपनी बाहों में लेकर उठाया, और कहा "आईआम सारी शीतल, मझे माफ कर दो। पता नहीं कल रात से मुझे क्या हो गया था। तुम्हें किसी और की बाहों में सोचकर मैं पागल हो गया था। आई आम सारी शीतल, प्लीज मुझे माफ कर दो..."

शीतल और जोर-जोर से रोने लगी और विकास के गले में लिपट गई। फिर तुरंत अलग हुई और बोली- "प्लीज जल्दी में जाकर वसीम चाचा को देखो। कहीं वो कुछ कर ना लें? प्लीज विकास जल्दी जाओ। प्लीज़.."

विकास भी शीतल से अलग हुआ और कहा- "हॉ... हाँ, मैं तुरंत जा रहा है." बोलता हुआ अपनी बाइक लेकर निकल पड़ा।

दो-तीन घंटे तक बो इधर से उधर घूमता रहा। वसीम के दुकान में, बस स्टैंड, स्टेशन, पानी टंकी हर तरफ। लकिन वसीम उसे कहीं नहीं मिला। वो बहुत परेशान हो गया था। उसकी बजह से कोई इंसान अपनी जान दे रहा था। उसके गुस्से की वजह से वसीम पता नहीं कहाँ चला गया था? विकास बहुत अपराधी महसूस कर रहा था। उसने कई बार वसीम का फोन ट्राई किया लेकिन हर बार स्विच आफ। उसने घर में भी शीतल को काल करके पूछा की वसीम चाचा आए हैं क्या?

शीतल लगातार रोती जा रही थी और विकास के काल के बाद में पता चलते ही की उनका कुछ पता नहीं चला है शीतल और रोने लगती थी। थक हार कर विकास घर आ गया। शीतल को भी सम्हालना बहुत जरूरी था। विकास घर आया तो शीतल गुमसुम सी बैठी हुई थी सोफा पे। वो अपने कपड़े चेंज करके साड़ी पहन ली थी और उसने पैटी और ब्रा भी पहन लिया था।

शीतल विकास को अर्कला आता देखकर उदास सी हो गई, और बोली- "ये तुमने क्या कर दिया विकास? इतना कुछ किए लेकिन सब बेकार हो गया। इससे तो अच्छा था की हम उन्हें इसी तरह छोड़ देते। बेचारा घुट-घुट के जीता लेकिन जीता तो। कहीं वा उन्होंने कुछ कर लिया होगा तो मैं कहीं भी सुकन से जी नहीं पाऊँगी..."

शीतल विकास को अर्कला आता देखकर उदास सी हो गई, और बोली- "ये तुमने क्या कर दिया विकास? इतना कुछ किए लेकिन सब बेकार हो गया। इससे तो अच्छा था की हम उन्हें इसी तरह छोड़ देते। बेचारा घुट-घुट के जीता लेकिन जीता तो। कहीं वा उन्होंने कुछ कर लिया होगा तो मैं कहीं भी सुकन से जी नहीं पाऊँगी..."

विकास बेचारा बहुत परेशान हो चुका था। उसने शीतल को बताया की वो कहाँ-कहाँ ढूँद चुका है। विकास के मन में बहुत कुछ चल रहा था। वो चाह रहा था की वसीम चाचा वापस घर आ जाएं। एक इंसान की मौत का कारण बो नहीं बन सकता था। ये बोझ वो अपने सिर पे नहीं रख सकता था। लेकिन उसे ये भी लग रहा था की अगर वसीम चाचा वापस आ गये तो क्या वो अपनी सुंदर बीवी को उनसे चुदवाने के लिए छोड़ देंगा। फिर उसने सोचा की ये सब बा बाद में सागा, अभी किसी तरह वसीम चाचा वापस आ जाएं बस।

अचानक शीतल को याद आया की मकसूद तो वसीम को काफी पहले से जानता है। वो दौड़कर विकास को बताई
और विकास काल लगाकर मकसद से पूछा।

मकसूद पूछने लगा- "क्या हुआ सर? वसीम के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?"

विकास ने उसे बताया की- "वसीम चाचा घर से गये हैं लेकिन वापस आए नहीं हैं। उनका मोबाइल भी बंद है.."

मकसूद बताया- "उसके घर में कोई नहीं है और बो कभी कभार ही अपने गाँव जाता है। ये हमेशा अकेला ही रहता है। उसका दूसरा और कोई नम्बर भी नहीं बताया.."

शीतल और भी परेशान हो गईं।

शाम में शीतल और विकास दोनों वसीम के दुकान पे गये और वहाँ भी उन लोगों ने अगल-बगल के दुकान वालों से पूछताछ की। लेकिन सबका एक ही जवाब था की ये अकेला ही रहता है और कभी कहीं आता जाता नहीं है। अगर इसकी दुकान खुली नहीं है तो या तो ये कहीं बाहर गया होगा या फिर इसकी तबीयत खराब होगी। एक दुकानदार ने ये भी बताया की इसकी जायदाद के लालच में इसके दर के रितंदार इसके पास आना चाहते हैं। लेकिन क्सीम सबसे दूर ही रहता है।

रात में शीतल और विकास ने खाना बाहर से ही पैक करवा लिया और घर ले आए। शीतल सुबह से भूखी बैठी थी अपने वसीम के इंतजार में। किसी तरह विकास के समझाने के बाद वो थोड़ा सा खाई और सोने चली गई। विकास बाहर आकर सोफे पे बैंठकर सोचने लगा। अगर वसीम चाचा नहीं मिले तो क्या होगा? कोई ना कोई तो उन्हें टूटने आएगा ही ना। सही बात है की इस जगह पे इतना बड़ा मकान और मुख्य मार्केट में दुकान कोई मामूली चीज नहीं है। वसीम चाचा का कोई नहीं है तो इस संपत्ति के लालच में तो लोग पड़ेंगे ही। विकास के मन में भी लालच आ गया की कितना अच्छा हो की वसीम चाचा आए हो ना, और ये घर उसका हो जाए। लेकिन फिर उसे खयाल आया की वो अगर नहीं भी आए तो भी ये घर उसका तो नहीं ही हो सकता।

विकास का मोबाइल चार्ज में लगा हुआ था, और शीतल का मोबाइल वहीं सोफा पे रखा हुआ था तो वो शीतल के मोबाइल से ही वसीम का काल ट्राई किया, लेकिन मोबाइल अभी भी स्विचआफ ही था। विकास यूँ ही शीतल के मोबाइल में कुछ-कुछ करने लगा। वो गैलरी खोला तो उसमें वसीम की नंगी पिक्स थी, जो वो सुबह में तब ली थी जब वो तीसरी बार चोदकर गहरी नींद में सोया हुआ था। 8-10 पिक्स को देखकर विकास उदास हो गया। वसीम का लण्ड उसकी जांघों के बीच में सौंप की तरह लटक रहा था। उसका लण्ड टाइट नहीं था लेकिन फिर भी इतना बड़ा और माटे साइज का था, जिसका आधा भी विकास का फुल टाइट होने पे नहीं होता। वो मायूस हो गया और समझ गया की अब शीतल कभी उसकी नहीं हो पाएगी। जिस चूत को एक बार इस लण्ड का टेस्ट मिल गया है वो भला अब विकास का लण्ड क्यों लेंगी?

विकास और पिक्स देखने लगा। उसे छिपाई हुई बा पिक्स भी दिख गईं जो शीतल ने खुद ली थी और वसीम के
मोबाइल में भेजी थी।

उधर मकसूद परेशान हो गया की विकास सर वसीम के बारे में इतना परेशान होकर क्यों पूछ रहे हैं? वो शाम में वसीम के घर के पास आया। उसे यहाँ कई लोग पहचानते थे। वो उनसे बातों ही बातों में वसीम के बारे में पूछा तो उसे पता चल गया की दिन में वसीम यहाँ से गया है, और शीतल सिर्फ नाइटी में उसके पीछे दौड़ी है। लेकिन उसे पकड़ नहीं पाई तो फिर वापस आ गई है, और फिर थोड़ी देर बाद विकास बदहवास सा घर में बाइक में निकला है। सब हँसकर बता रहे थे की कैसे शीतल सिर्फ नाइटी में भी और बिना ब्रा पैंटी के कमाल की माल लग रही थी? कैसे उसकी चूचियां और गाण्ड मटक रही थी?

मकसूद उस दृश्य को कल्पना करके सोचने लगा और उसका लण्ड टाइट हो गया। उसे समझ में आने लगा की कुछ तो चक्कर चला रहा है? वो सोचने लगा की जब वसीम यहाँ नहीं है तो गया कहाँ होगा? उसने भी वसीम का काल लगाया तो लगा नहीं। उसने अपने एक-दोस्त को काल लगाया जो एक होटेल चलता था। उसने बताया की वसीम दिन से उसके ही होटेल में रुका हुआ है।

मकसूद हसता मुश्कुराता हुआ उस होटेल में जा पहुंचा। वो होटेल एक स्लम एरिया में था और बेहद सस्ता सा होटेल था। मकसूद वसीम के पास पहुँच गया और दरवाजा पे जोर का धक्का दिया। ये दरवाजा पूरा लाक नहीं होता था तो दरवाजा खुल गया।

मकसूद- "वन्या किए हो रे मादरचोद तुम, जो यहाँ छुप के बैठे हो? विकास की उस रंडी बीवी को चोद दिए हो क्या?" मकसूद रूम में घुसते ही वसीम से बोला।

वसीम अकेला साया हुआ होटेल के टीवी पे शीतल की चुदाई देख रहा था। उसने तुरंत ही टीवी बंद कर दिया। वो मकसूद को देखकर हँस दिया और बोला- "तुझे कैसे पता रे मादर चोद की मैं यहाँ हैं?"

मकसूद बोला- "तेरी रग-रग से वाकिफ हूँ। क्या किया है तूने?"

वसीम बोला. "कुछ नहीं, बाद में बताऊँगा..."

मकसूद भला चुप कहाँ रहने वाला था। और उसपे से शीतल की बात बीच में आ रही थी तो उसे ज्यादा ही बैचैनी हो रही थी।

वसीम ने उससे कहा "सबर रख सब बताऊँगा। त बस विकास को मेरे बारे में और यहीं के बारे में मत बता देना। और मेरा एक कम कर." वसीम ने उसे बहुत कुछ समझाया और मकसूद चला गया।

मकसूद जानता था की भले उसे वसीम कुछ नहीं बता रहा लेकिन बताएगा जर सब।

इधर विकास बहुत कुछ सोचता हुआ अपने रूम में आया और शीतल को साते हए देखा। वो फिर से सोचने लगा की- इस गोरे और हसीन जिश्म के ऊपर चढ़ कर काले और मोटे वसीम ने अपने मोटे और काले लण्ड से इसकी चुदाई की होगी। इतने मोटे लण्ड के अंदर जाने में शीतल कैसे कर रही होगी? उसे लगा की अब अगर में शीतल की चुदाई करूगा तो या तो शीतल चुदाएगी नहीं और अगर चुदवाई भी तो उसे कुछ मजा नहीं आएगा. विकास शीतल के बगल में लेट गया। उसने देखा की शीतल साई नहीं थी बल्कि रो रही थी। विकास उसे चुप कराने लगा।

शीतल बोली- "वसीम चाचा बहुत अच्छे आदमी हैं विकास। उन्होंने खुद को बहुत काबू में करके रखा था। उस देवता समान आदमी के साथ बहुत गलत हुआ.."

विकास शीतल को बाहों में भरकर चुप कराने का प्रयास करने लगा।

शीतल फिर बोली- "वो तो पहले भी मुझसे दूर रहते थे। कल रात में भी उन्होंने कुछ करने से पहले मुझसे पूछ लिया था और जब मैं बोली तब ही उन्होंने आगे कुछ किया। फिर खाना खाने के बाद जब हम लोग सोने आए तो मुझे लगा की शायद वो कुछ करेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया और यूँ ही सो गये। लेकिन नींद में तो कोई अपनी दबी भावनाओं पे तो काबू नहीं पा सकता ना... तो नींद में वो पागलों की तरह मुझे नोचने खसाटने लगे। नींद में उन्होंने मुझें दो बार चोदा जिससे मुझे लगा की उनके अंदर कितना गुबार भरा है। तभी मैं सोच ली थी की इस तरह एक बार से उन्हें सुकून नहीं मिलेगा और में उनका साथ देती रहूंगी, जब तक बा ठीक नहीं हो जाते। लेकिन वो जब सुबह जागे तो बहुत परेशान थे की उन्होंने नौद में मेरे साथ क्या-क्या कर दिया? वो खुद कह रहे थे की मैं उन्हें एक रात के लिए मिली हैं, और अब वो मुझसे हमेशा के लिए दूर रहेंगे। लेकिन मेरे समझाने में उन्होंने ये वादा किया की वो मुझसे बातें करेंगे, हँसी मजाक करेंगे लेकिन चाटेंगे नहीं। फिर भी मैं ही उन्हें बोली की कोई बंधन मत रखिए। नहीं करना हो तो मत करिएगा, लेकिन ऐसा कोई सीमा नहीं है। अगर कभी भी आपके मन में ख्वाहिश जागी तो आप उसे पूरा कर सकते हैं और मैं आपके लिए हाजिर रहुंगी..."

विकास शीतल को बाहों में भरकर चुप कराता रहा और शीतल सुबक्ती रही। फिर इसी तरह वो सो गई।

सुबह शीतल चाय लेकर आई और विकास को जगाई। विकास तैयार होकर आफिस चला गया। आफिस जाते ही उसने मकसूद को बुला लिया। मकसद तो विकास का ही इतंजार कर रहा था। मकसद वसीम का सिखाया हुआ बताने लगा की वसीम बहुत शरीफ इमानदार और भावनाओं में बहने वाला आदमी है। अपनी बीवी की मौत के बाद वो बेहद ही चुप हो गया और निजी जिंदगी जीने लगा। शीतल के मन में वसीम के लिए और आदर सम्मान उम्रड़ पड़ा।

विकास के जाने के बाद शीतल वसीम के मोबाइल में फोन लगाने लगी, लेकिन मोबाइल स्विच-आफ आ रहा था। बहुत देर तक वो काल लगाती रही लेकिन फान नहीं लगा। शीतल दोपहर का इंतेजार करने लगी की हमेशा की तरह वसीम घर आएं। एक बज गये लेकिन वसीम आज भी घर नहीं आया। शीतल फिर से काल लगाने लगी, जब वसीम का काल नहीं लगा ता विकास को काल लगाई।

विकास ने भी कहा- "मैं बहुत दँदा लेकिन वसीम नहीं मिले..."

शाम में विकास जब वापस आया तो शीतल और विकास ने कई जगह फोन किया और पता किया। लेकिन वसीम का कोई पता नहीं चला। शीतल विकास से गुस्सा भी हो रही थी क्योंकी में पूरी तरह उसी की गलती थी।

शीतल का बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वसीम यहाँ अकेला रहता था, इसलिए शीतल के अलावा और कोई परेशान नहीं था। लेकिन भला शीतल का दर्द कौन जाने, जो तन और मन से वसीम की रांड बन चुकी थी। उसे पहला तो ये दुख था की वसीम जैसे भले इनसेन के साथ गलत हुआ, और दूसरा में दुख था की अब उसकी चूत हमेशा के लिए प्यासी रह जाएगी। लेकिन उसकी चूत प्यासी रहने के लिए नहीं बनी थी। उसकी चूत में तो लण्डों का मेला लगना था।

वसीम का अगले दिन भी कोई पता नहीं चला। उसकी दुकान भी बंद थी और फोन भी नहीं लग रहा था। शीतल की तो जैसे दुनियां ही उजड़ गईथी। वो ना ता खा पा रही थी, ना ही सो पा रही थी। उसे यही डर सता रहा था

की कहीं वसीम में कुछ कर ना लिया हो। ये सब उसी की गलती थी। उसे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। : इस दनियां में ही नहीं आना चाहिए था। उसकी वजह से एक सीधे साधे इंसान की जिंदगी बर्बाद हो गई। उसका मन हुआ की वो भी खुद को मार लें।

विकास ने उसे बहुत समझाया था की वसीम चाचा को कुछ नहीं हुआ है और वो जरूर आएंगे। शीतल की हालत और वसीम के बारे में जानकार विकास बहुत कुछ सोच चुका था।

विकास का प्रमोशन हो चुका था और उसे सोमवार से दूसरी जगह जाटन भी करना था। ये बड़ी बात थी उसके लिए लेकिन शीतल इतनी परेशान थी की उसने ये बात शीतल को बताया ही नहीं था। विकास ने आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लिया था और अगले सोमवार से जोयिन करने वाला था। उसने सोचा था की बीच में मौका पाते ही वो शीतल को बता देगा, और फिर हम लोग इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे।

आज सट. था। विकास ने मकसूद को काल लगाया और अपने घर बुला लिया। मकसूद उछलता कूदता हुआ विकास के घर आया की शीतल को देखने का मौका मिलेगा। शीतल बहुत बदहवास सी हालत में थी। विकास मकसूद को लेकर वसीम के गाँव जाने लगा, जो लगभग 200 किलोमीलीटर दूर था।

शीतल जब वो लोग जाने लगे तो मकसूद का बोली- "प्लीज... मकसद जी, उन्हें कहीं से भी टूट लाइए। कहीं से भी उनका पता लगाइए। फिर आप जो माँगेंगें मैं सब दूँगी । जितना पैसा कहेंगे सब दूँगी..."

मकसूद बोला- "घबराइए मत मेडम, उसे कुछ नहीं होगा। मैं जानता हूँ वो बहुत शख्त जान है, उसे कुछ नहीं होगा। कहाँ बैठा होगा, दो-चार दिन होंगे सही सलामत लौट आएगा। जब वो छोटा था तब भी इसी तरह करता था। माँ बाप से झगड़ा किया या भाई से झगड़ा किया और घर से भाग गया और फिर चार-पाँच दिन बाद वापस आ गया। आप बिल्कुल भी मत घबराईए। हम लाग उसे ढूँट लेंगे.."

शीतल मकसूद की बात सुनकर थोड़ी खुश हुई, और बोली- "आपके मुँह में घी शक्कर मकसूद। अगर आपकी बात सच निकली और वो सही सलामत घर आ गये तो आपका मुँह में मिठाई और पैसे से भर दूँगी..."

वसीम को गये तीन दिन बीत गये थे, और उसका कोई पता नहीं था। इन तीन दिनों में विकास बहुत परेशान हो चुका था। वो हर जगह टूट चुका था वसीम को। यहाँ तक की उसके गाँव भी जा चुका था, और उसमें उसका साथ दे रहा था मकसद जो विकास को हर जगह ले जा रहा था लेकिन उस होटेल में नहीं ले जा रहा था। विकास को ये डर भी सता रहा था की अगर वसीम नहीं मिला और उसे कुछ हो गया तो कहीं ऐसा ना हो की लोग उसी में शक करने लगे।

विकास ने अब फैसला ले लिया था की कल तक अगर वसीम का कुछ पता नहीं चला तो वो पोलिस में कंप्लेन करा देगा।

मकसद विकास के साथ की सारी रिपोर्टिंग वसीम को करता था। विकास के ट्रांसफर की बात मकसद को पता नहीं थी। लेकिन उसने पोलिस कंप्लेंट वाली बात वसीम को बता दिया।

वहस्पतिवार को 12:00 बजे से वसीम गायब था। आज सनडे आ गया था। विकास इस हफ्ते बहुत परेशान रहा था। उसने सोचा की इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने का सबसे आसान तरीका है यहाँ से चलें जाना। फिर ना वसीम होगा और ना उसका दर्द। शीतल भी नई जगह जाकर फेश हो जाएगी। उसने इसी सोमवार को नये शहर में जोयिन करने का निर्णय किया।

सुबह नाश्ता करने के बाद शीतल मायूस सी बैठी हुई थी।

विकास उसके बगल में गया और उसके कंधे पे हाथ रखता हुआ उसे प्यार से बोला- "तुम्हें एक बड़ी खबर देनी है, लेकिन तुम्हारी उदासी देख कर मैं तुम्हें बता नहीं पा रहा है."

शीतल जबरदस्ती की हँसी हँसते हुए बोली- "बोलो ना.."

विकास ने उसे सब कुछ बताया और समझाया।

शीतल बोली- "ये तो बहुत अच्छी बात है."

उन दोनों के बीच में निर्णय हुआ की विकास कल ही जोयिन कर लेगा और फिर जल्दी से रगम ट्रॅटकर फिर शीतल भी वहीं शिफ्ट हो जाएगी। विकास में उससे कहा भी वो चाहे तो तब तक विकास के घर या अपने मायके जा सकती है। लेकिन शीतल ने मना कर दिया। उसे पूरी उम्मीद थी की वसीम जरूर आएगा और इसलिए वो ना तो किसी को यहाँ बुलाने के लिए राजी हुई और ना ही कहीं जाने के लिए। विकास को कल जोयिन करना था तो उसे आज ही शाम में निकलना पड़ता, क्योंकी वा जगह लगभग 250 किलोमीटर दर थी।

विकास अपनी पैकिंग करने लगा और शीतल उसकी हेल्प करने लगी। वसीम का आज भी कुछ पता नहीं चला। विकास ने एक बार मकसूद का काल किया।
लेकिन मकसूद का वही जवाब था- "सर वो बहुत हरामी है। आप बिल्कुल परेशान मत हो। वो किसी जगह पे छिपा बैठा हुआ होगा और जब उसका मूड ठीक होगा तो वो अपने आप आ जाएगा। आप उसके लिए परेशान मत होइए और पोलिस बालिस के पास जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बचपन से इसी तरह करता आ रहा है।

आप लोग बिंदास रहिए."

शाम में शीतल भी विकास को बस स्टैंड पहुँचाने चल दी। सट. तक शीतल को अकेले रहना था। विकास को ऐसी हालत में शीतल को छोड़कर जाने का बिल्कुल मन नहीं था, लेकिन उसका जाना भी बेहद जरूरी था।

वापस लौटते वक्त शीतल वसीम की दुकान की तरफ चली गई। दुकान बंद थी। शीतल ने कार रोक दी और इधर-उधर देखने लगी। वो पहले भी विकास के साथ यहाँ वसीम के बारे में पूछने आ चुकी थी और शीतल जैसी अप्सरा को भला कौन भूल सकता है।

एक 15 साल का लड़का शीतल के पास आया और बोला- "आप वसीम खान को टूट रही हैं ना?"

शीतल खुश हो गई, और बोली- "हाँ, तुम्हें पता है वो कहाँ है? तुमने देखा है उन्हें?"
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बो लड़का कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल बोल पड़ी. "मुझे बताओ उनके बारे में। मैं तुम्हें पैसे दूँगी..." बोलती हुई शीतल अपने पर्स से 500 रूपये का नोट निकाल ली।

वो लड़का ₹500 का नोट देखकर खुश हो गया और शीतल को उस होटेल का नाम और अड्रेस बता दिया।

शीतल उसे 500 का वो नोट दे दी और बोली- "मेरे साथ चलोगे वहाँ तक? मैं और पैसे दूंगी। बहुत पैसे..."

लड़के के मन में लालच आ गया लेकिन फिर भी उसने मना कर दिया। और बोला- "नहीं नहीं, अब बात हो गई है। रात में उधर कोई नहीं जाता। आप कल सुबह आना मैं आपको ले चलेगा..."

शीतल उसे समझाई और लालच भी दी लेकिन उसने मना कर दिया और बताया- "शाम होने के बाद वहाँ जाना ठीक नहीं रहता। अमीर और लड़की लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। सुबह आना तब मैं आपको ले चलूँगा..."

शीतल पेपर पे होटेल का नाम, अइंस और लड़के का नाम लिख ली और वहाँ से चल दी। अब भला उसे चैन कहाँ था? वो सुबह तक का इंतेजार कैसे कर सकती थी? उसने मकसूद को काल लगाया लेकिन उसे फोन लगा ही नहीं। शीतल अकेली जाने का फैसला की, लेकिन एक तो उसे इस शहर के बारे में कुछ पता नहीं था और दूसरी बात ये की ऐमें रात में वो कहीं अंजान गास्तों पे इधर-उधर भटकेगी। उसे वसीम में तो गुस्सा भी आ रहा
था और मकसूद पे भी गुस्सा आ रहा था। वो खीझ गई थी और फिर मन मसोस कर घर आ गई।

आज शीतल को अकेली रहना था। खाना बनाकर गई थी वो तो टीवी देखते-देखते खाना खाने लगी। लेकिन जा तो उसे टीवी देखने में मन लग रहा था और ना ही खाने में। वो फिर से मकसद को काल करने के लिए फोन उठाई तो देखी की विकास का मेसेंज़ था। वो मेसेज़ पढ़ने लगी।

विकाह- "आई आम मारी शीतल। कोशिश करना की मुझे माफ कर सको। ये मेरी गलती थी। तुमनें वसीम चाचा को अपना सब कुछ दिया, लेकिन मेरी वजह से सब बर्बाद हो गया। तुमने इतनी मेहनत की की उन्हें खुशी मिले, लेकिन मैंने उन्हें और ज्यादा गम में धकेल दिया। उस दिन जो कुछ भी हुआ शीतल मरे बहक जाने की बजह से हुआ। मैं ना जानें क्या-क्या सोच रहा था। लेकिन मैं अब अपने फैसले में कायम हैं। तुम अभी भी वसीम चाचा को अपना जिश्म पेश कर सकती हो, और तुम्हें मेरी तरफ से इसकी इजाजत है। एक बार की नहीं सौ बार की इजाजत है। मैंने तुम्हारे मोबाइल में एक मेसेज़ काई कर दिया है। तुम्हें अपना निर्णय लेने में कोई परेशानी ना हो इसलिए मैंने तुम्हें अपने मन की बात बता दिया। मेरी वजह से वसीम चाचा पता नहीं कहाँ चलें गये हैं। लेकिन यकीन है की वो आएंगे जरूर.."

शीतल कार्डिंग ट्रॅदने लगी और सुनने लगी। शीतल को मन नहीं लग रहा था। बो रूम में सोने आ गई। वो अपने सारे कपड़े उतार दी। शीतल ने आज वही पैटी पहनी हुई थी जिसमें उसने पहली बार वसीम को अपना बीर्य गिराते देखा था। वो उसी पैंटी को पहनें बेड पे लेटी हुई वसीम को याद करती रही। शीतल मायूस सी लेटी हुई थी और वसीम के साथ बिताए पलों को याद कर रही थी। वो बहुत परेशान थी की पता नहीं वसीम उस होटल में हैं या नहीं?

फिर वो अपने मोबाइल में वसीम की पिक देखने लगी और सोचने लगी- "आहह... वसीम आप क्यों चले गये?

अभी आप होते तो आपका ये मोटा लण्ड फिर से मेरी चूत के अंदर होता। आ जाइए ना वसीम प्लीज... अपनी चंडी के लिए आ जाइए। आपको अगर जाना ही था तो मुझे भी साथ ले चलतें। कम से कम रोज चार-पौंच बार आपसे चुदवाती तो। अब ये चूत आपके लण्ड के लिए ही है। अब अगर इसे आपका लण्ड नहीं मिला तो किसी का नहीं मिलेगा। विकास को भी नहीं। उसी की वजह से आप मुझसे दूर हुए हैं, तो उसे भी मुझसे दूर ही रहना होगा..."

शीतल अब अपनी चूत में उंगली करने लगी थी- "आहह... वसीम बस उस लड़के ने सच कहा हो मुझसे। कल सुबह मैं आपके सामने हाऊँगी। आप मुझसे भाग नहीं सकते। फिर आपकी मर्जी हो या ना हो, आपको मुझे चोदना ही होगा। मेरी चूत को अपने बीर्य से भरना ही होगा आहह.." फिर शीतल अपनी चूत में पानी निकालकर नंगी ही सो गई।

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